Book Title: Hindi Bhakti Sahitya me Guru ka Swarup aur Mahattva Author(s): Kishorilal Raigar Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf View full book textPage 7
________________ 95 || 10 जनवरी 2011 || जिनवाणी गुरु है हितकारी तेरे। गुरु बिन कोई मित्र न है २।। गुरु फंद छुड़ावेजम के| गुरु मर्म लिखावें सम कै।। भौजल से पार उतारें। छिन-छिन में तुझे संवारें।। (सारबचन, स्वामी शिवदयालसिंह) प्रेममार्गी सूफी संतों ने भी गुरु की महत्ता का बखान बहुत ही आदरपूर्वक व्यापक रूप में किया है। उनकी मान्यता है कि बिना गुरु के निर्गुण ब्रह्म का रहस्य प्राप्त नहीं किया जा सकता। जायसी बहुत ही प्रसिद्ध सूफी संत हुए हैं। उन्होंने 'पद्मावत' में गुरु के महत्त्व का बखान इस प्रकार से किया है - गुरु सुआ जेहि पंथ देखावा। बिन गुरु जगत को निरगुण पारवा।। (पद्मावत, जायसी) इसी तरह सूफीसत सुल्तान बाहू ने मुरशिद (गुरु) को रहमत का दरवाजा बताते हुए कहा है - मुरशद मैनूं हज्ज मक्के दा, रहमत दा दरवाजा हूँ। करां तवाफ़ दुआळे किबळे, हज्ज होवे नित्त ताजा हूँ।। (सुलतान बाहू) साईं बुल्लेशाह ने गुरु को साक्षात् खुदा के रूप में मानते हुए कहा है - मौला आदमी बण आया। ओह आया जग जगाया।। (साईं बुल्लेशाह) इस छोटे से कलमें में साईं बुल्लेशाह ने गुरु की महत्ता का पूरा बखान कर दिया है कि उस आदमी रूपी सतगुरु ने संसार को जगाया है। संतमत में गुरु को अत्यधिक प्रमुखता दी गई है, क्योंकि गुरु शिष्य को सिमरण की विधि सिखाकर नामदान देता है। बिना गुरु के सुमिरन करने वाले व्यक्ति को सावधान करते हुए कबीर कहते हैं कि - जो निगुरा सुमिरन करे, दिन में सौ सौ बार। नगर नायका सत करे, जरै कौन की लार।। (कबीर) सद्गुरु मोक्ष-मुक्ति का दाता होता है। आदिग्रंथ' में इस सम्बन्ध में कहा गया है गगन मध्य जो कँवल है, बाजत अनहद तूर। दळ हजार को कमळ है, पहुँच गुरु मत सूर।। (चरनदास) कहने का तात्पर्य यह है कि सद्गुरु के बताये मार्ग द्वारा ही उस परम पुरुष तक पहुंचा जा सकता है। दरिया साहब भी यही बात कहते हैं - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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