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अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२
ने आपणने पोताने माटे तो कंइ आंसु लावतां ज नथी. अने आपणे समजतां ज नथी के आपणने पण अमने एम ज अक दहाडो मोतनुं बीछानुं सेवकुं पडवानुं छे. ओक बळता जंगलमा हरण जेम नासभाग करवाथी कदी बची शकतुं नथी. तेवी रीते मनुष्योने आ जगतमां मोतथी छूटवानो कंइ रस्तो ज नथी."
हेमचन्द्रे जणावेला आ विचारना जेवा ज विचार बीजा देशना धर्मगुरुओ पण प्रसंगोपात्त जाहेर कर्या सिवाय रह्या नथी. ख्रिस्ती धर्मपुस्तक बाइबलमां पण कां छे के "ओ मनुष्य ! तुं खोटा भरोसा पर बेसी रहेतो नहि. परमेश्वरने तुं छेतरी शकीश अवो ख्याल तारा मनमा राखतो नहि. जेवां बीज रोपशे तेवां फळ तने मळशे ओ तुं हमेशां याद राखजे." ।
हेमचन्द्रे वळी कडुं छे के "माणस जे कंइ पैसा पेदा करशे ते सघळां पोतानी पाछळ मूकी जवा पडशे. ते कोइ बीजा वापरशे ने तेने पोताने तो फक्त पोतानां नठारां के सारां कामो साथे लइने ज जq पडशे. तेनां सारां के नठारां कामो ज तेने शिक्षाना कारणरूप अथवा मुक्तिना साधनरूप थइ पडशे."
हेमचन्द्र आ सघळु जणाव्या पछी पुनर्जन्मना मत विषे बोले छे. ओ पुनर्जन्मनो मत जेम ओशियाना बीजा केटलाक धर्ममां पण कबूल रखायेलो छे. तेवी ज रीते जैनमतमां पण पुनर्जन्मना मतने सर्व प्रकारे मानवामां आव्यो छे.
आ पुनर्जन्मना मतने ख्रिस्ती लोको मानता नथी ने युरोपमां ओ पुनर्जन्मना मत तरफ हजी लोकोनी लागणी नथी.
हेमचन्द्रे वळी दरेक माणसने पोतानुं कर्तव्य करवानी बाबतमां जे बोध करेलो छे ते पण अवो उत्तम छ के तेनां जेटलां वखाण करीओ तेटलां ओछां छे. ते कहे छे के "जे मनुष्य पोतानी इन्द्रियो वश राखतां शीख्यो ते आ जगतरूपी समुद्र तरी गयो अम समजवं. दश प्रकारे माणसोओ पोतानी इन्द्रियो वश राखवानी ने प्रामाणिकताथी जे माणस पोतानी जिंदगी गाळशे; ते माणसनी आ जिंदगीने अन्ते जरूर मुक्ति थया सिवाय रहेशे नहि. ने तेने दुनियामां पाछो जन्म लेवो रहेशे नहि. जगतमां कर्तव्य ओ वस्तु सर्वथी मोटी छे. जे माणस पोतानुं कर्तव्य बराबर करे छे ते हमेशां परिणामे सुखी थया सिवाय रहेतो नथी. आ दुनियारूपी समुद्रना अगाध पाणीमांथी