Book Title: Heervijaysuri Shishya Shubhvijay krut Syadvad Bhasha
Author(s): N M Kansara
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ [103] आ बधा साधुशिष्योमांना एक हता पं. शुभविजय गणि. एमणे पोतानी 'जातने पोताना ग्रंथांना आरंभे ज श्रीहीरविजयसूरीश्वरजीने पोताना "गुरु" तरीके निर्देशीने प्रणाम कर्या छे अने ग्रंथोनी पुष्पिकाओमां पण पोताने श्रीहीरविजयसूरीश्वरना चरणसेवी शिष्य तरीके ओळखाच्या छे. तेमणे तर्कभाषावार्तिक, स्याद्वाद भाषासूत्र, स्याद्वादभाषा सूत्र वृत्ति, अने प्रश्नोत्तरमाला, तथा काव्यकल्पलतावृत्तिमकरंद अने हैमी नाममाला, महावीर स्वामीनुं २७ भवनुं स्तवन ए सात ग्रंथो रच्या छे. आ संस्कृत ग्रंथोनी रचना माटे तेमने तेमना ज्येष्ठ गुरुबंधु श्रीविजयदेवसूरीश्वर तरफथी सूचन अने प्रोत्साहन मयुं हतुं श्रीहीरविजयसूरीश्वरजी पछी श्रीविजयसेनसूरीश्वरजी पासे आव्या अने तेमना पछी श्री विजयदेवसूरीश्वरजी पासे आव्या हता. पं. शुभविजयगणिए पोताना आ ग्रंथो वि. सं. १६६१ थी १६७१ ना दस वर्षना गाळामां ज रच्या छे, पं. शुभविजय गणिनो स्याद्वादभाषा ग्रंथ सूत्र अने वृत्ति ए उभयस्वरूपे रचायेलो छे. आ सूत्रग्रंथमां एमणे वादी देवसूरिकृत प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार नामना सुप्रसिद्ध ग्रंथमांनां ज मोटा भागनां सूत्रो अपनाव्यां छे अने क्वचित् माणिक्यनंदिनां परीक्षामुखसूत्रमांना थोडांक सूत्रो पण लीधां छे. उपरांत आचार्य हरिभद्रसूरिकृत षड्दर्शनसमुच्चयनी केटलीक गाथाओना आधारे थोडांक सूत्रोनी रचना करी छे. आ बधां सूत्रोनी सरळ समजूती आपका एमणे वृत्तिग्रंथनी रचना करी छे. लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावादनी संशोधन पत्रिका 'संबोधि'ना अढारमा अंक (१९९२ - १९९३) मां आ स्याद्वादभाषा ग्रंथ वृत्ति सहित प्रसिद्ध करवामां आव्यो छे. पहेलां आ ग्रंथ पोथी रूपे बे वार छपायेलो छे, पण एमां सूत्र अने वृत्ति ए बे ग्रंथ भागोने योग्य रीते चोकसाईपूर्वक अलग पाडवामां आव्या न हता. ला द. विद्यामंदिरना 'संबोधिनी आवृत्तिमां आ बे भाग खूब चोकसाईपूर्वक अलग पाडीने दर्शाव्या छे. पं. शुभविजयगणिए आ स्याद्वादभाषा सूत्रवृत्ति ग्रंथनी रचना करी एमां मुख्य रूपे वादिदेवसूरिजीना प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकारनां ज सूत्रो अपनाव्यां होवाथी पोताना ग्रंथनुं बीजुं वैकल्पिक नाम आप्युं छे 'प्रमाणनयतत्त्वप्रवेशिका'. आ ग्रंथनी विशेषता ए छे के तेमां वादिदेवसूरिजीनां ज सूत्रो अपनाव्यां होवाथी तथा आठमा परिच्छेदनां सूत्रोमा आचार्य हरिभद्रसूरिना षड्दर्शनसमुच्चयनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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