Book Title: Hayatakhat Kavya Satik
Author(s): Kalyankirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 1
________________ हयाटाखाट काव्य-सटीक सं. मुनि कल्याणकीर्तिविजय आ काव्य एक ज श्लोक, छे. तेमां केतु सिवायना सूर्यादि आठ ग्रहोनां वाहनादि साथे अट् धातुने जोडीने बनावेलां नामो द्वारा ग्रहोने प्रार्थना करवामां आवी छे, के अमारुं रक्षण करो. आ श्लोकनी टीका पण साथे आपी छे, जे प्रतिनी शरुआतमां लखेल - श्रीवीतरागाय नमः ॥ एवा उल्लेखथी कोई जैन विद्वाने (मुनिए। गृहस्थे) लखेली होय तेवू अनुमानी शकाय छे. टीकाकारे सर्वप्रथम श्लोकनो ध्वन्यर्थ आप्यो छे अने पछी एक एक शब्दने लई, तेनी व्युत्पत्ति करवापूर्वक अने सन्दर्भरूपे अनेक कोशोनो आधार आपवापूर्वक, तेनो अर्थ एक एक ग्रहमां प्रस्थापित कर्यो छे. जे तेमना व्याकरणादि शब्दशास्त्रोना पाण्डित्यने सूचवे छे. तेमणे जे कोशो/कोशकारोनां नाम, सन्दर्भरूपे पाठ साथे आप्यां छे, ते छे : शब्दार्णव, हलायुध, धनञ्जय, सार्व, अनेकार्थध्वनिमञ्जरी, शाश्वत, निखिलार्थ, केशव, काण्व. 'काव्योहारक' अने 'काण्ड' ए पण कोई काव्यना उद्धरणरूप तथा कोई कोशवाचक नाम होय एम जणाय छे. कर्ता : स्तुतिना कर्ता अथवा टीकाना कर्ता तरीके आखी प्रतिमा क्यांय कोई उल्लेख नथी. प्रति परिचय : पाटणना श्रीहेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमन्दिरना डा. ३९१ नी १८३७० क्र. नी प्रतिनी झेरोक्षना आधारे आ कृतिनुं सम्पादन कर्यु छे. प्रतिमां १ ज पत्र छे. तेनी बन्ने बाजुए लखाण छे. अक्षरो मोटा तथा सुघड छे. लेखक अथवा लेखनसंवत्नो क्यांय उल्लेख नथी परन्तु लेखनशैली उपरथी लेखनकाळ १८ मो सैको अनुमानी शकाय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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