Book Title: Harmann Jacobi na Lekhono Jawab Author(s): Gambhirvijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 6
________________ १० सूत्रनो अक्षरार्थ कर्यो छे तेम, मांस सू० लेजो. - अस्य चो० आ मांसादिक ग्रहण ते क्वचित् कोइक ज कालमा कोइ महान् कार्य अटकी पडवाथी करवामा आवे. स्या माटे ? ते कहे छे : लूता० लूता नामे रोग थयो होय तो तेनी उपशान्तिने अर्थे, लूतानो स्वरूप प्रथम लिख्यो छे ते, आदि-शब्दथी एज आचारांग सूत्रना पेहला श्रुतस्कन्ध मा नियुक्तिकारें तथा टीकाकारें घणी जातीना रोग वर्णव्या छे, तेमां लूता जेवा होय ते लेवा. — अनुसन्धान- ४१ मांसना सूत्रनो पण अक्षरार्थ जानी ते वास्तें पण, सद्वैद्योपदेशतः - सांचो कुशल उत्तम वैद्यना केहवाथीऔषधनी मेलवनी बतावाथी, ते रोते पण, बाह्यपरिभोगेन स्वेदादिना - तेनो शरीर उपर उपभोग लेवें करीनें, ते ए रीतें तेथी दरद उपर परसेवो उपजावेवे करीने. एम पण अशुचिनो भोग शा वास्तें ते कहे छे ज्ञानाद्यु० ज्ञानध्यानादिकनी वृद्धिरूप उपकार करे छे माटे ते भोग जीवनें शुभ फलकारी कह्यो छे. Jain Education International भुजिश्चात्र बहिः परिभोगार्थे आ ठेकाने भोगक्रिया जे भोच्चा शब्द सूत्रमा कह्यो छे ते बाहिर एटले शरीरना उपरला भोगोमां लेवा रूप अर्थमां वर्त्ते छे, नाऽभ्यवहारार्थं पण खावाना अर्थमा आ ठेकाणे भोगक्रिया वर्त्तती नथी; केम जे श्रीदशवैकालिक सूत्रना पांचमा अध्ययनथी लेईने (प्रश्नव्याकरण - प्रमुख सूत्रोमा कह्यो छे के- जे साधु- प्रमुख दारुमांसादिक शरीरने मस्तकारी पदार्थ खाय ते मायावी अपयशें, लोकनिन्दनाई, विडम्बनाई पीडातो, धर्मभ्रष्ट, देव- गुरुनी आराधनाथी चुक्यो, मरण वखतें पण धर्मवासना पामे नही; तो विचारी जुओ जे खावानो अर्थ केम घटे ? - - तथा दारु-मांसनी वात तो रही पण बृहत्कल्प - व्यवहारादिक छेदसूत्रों ना निर्युक्ति-भाष्योमां कह्यो छे के-जे साधु डुंगली, लसन, सूरण, बटाटा, रंगणा, गाजर, मूला, सकरकंद, आदु-प्रमुख अनुचित वस्तुना शाक-चटणी विगेरें राधेला तइयार निरारंभी शुद्ध मिल्यो छे एम जाणीने लेइने खाय तो तेने महानिध्वंस परिणामि कह्यो छे, तेने गुरु चौमासी - दंड लिख्यो छे ने तमोगुणी कह्यो, तिवारें मांस खावा वात क्या रही ? अपितु क्यांहिं पण न होय माटें For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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