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सूत्रनो अक्षरार्थ कर्यो छे तेम, मांस सू०
लेजो.
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अस्य चो०
आ मांसादिक ग्रहण ते क्वचित् कोइक ज कालमा कोइ महान् कार्य अटकी पडवाथी करवामा आवे. स्या माटे ? ते कहे छे : लूता० लूता नामे रोग थयो होय तो तेनी उपशान्तिने अर्थे, लूतानो स्वरूप प्रथम लिख्यो छे ते, आदि-शब्दथी एज आचारांग सूत्रना पेहला श्रुतस्कन्ध मा नियुक्तिकारें तथा टीकाकारें घणी जातीना रोग वर्णव्या छे, तेमां लूता जेवा होय ते लेवा.
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अनुसन्धान- ४१
मांसना सूत्रनो पण अक्षरार्थ जानी
ते वास्तें पण, सद्वैद्योपदेशतः - सांचो कुशल उत्तम वैद्यना केहवाथीऔषधनी मेलवनी बतावाथी, ते रोते पण, बाह्यपरिभोगेन स्वेदादिना - तेनो शरीर उपर उपभोग लेवें करीनें, ते ए रीतें तेथी दरद उपर परसेवो उपजावेवे करीने. एम पण अशुचिनो भोग शा वास्तें ते कहे छे ज्ञानाद्यु० ज्ञानध्यानादिकनी वृद्धिरूप उपकार करे छे माटे ते भोग जीवनें शुभ फलकारी कह्यो छे.
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भुजिश्चात्र बहिः परिभोगार्थे आ ठेकाने भोगक्रिया जे भोच्चा शब्द सूत्रमा कह्यो छे ते बाहिर एटले शरीरना उपरला भोगोमां लेवा रूप अर्थमां वर्त्ते छे, नाऽभ्यवहारार्थं पण खावाना अर्थमा आ ठेकाणे भोगक्रिया वर्त्तती नथी; केम जे श्रीदशवैकालिक सूत्रना पांचमा अध्ययनथी लेईने (प्रश्नव्याकरण - प्रमुख सूत्रोमा कह्यो छे के- जे साधु- प्रमुख दारुमांसादिक शरीरने मस्तकारी पदार्थ खाय ते मायावी अपयशें, लोकनिन्दनाई, विडम्बनाई पीडातो, धर्मभ्रष्ट, देव- गुरुनी आराधनाथी चुक्यो, मरण वखतें पण धर्मवासना पामे नही; तो विचारी जुओ जे खावानो अर्थ केम घटे ?
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तथा दारु-मांसनी वात तो रही पण बृहत्कल्प - व्यवहारादिक छेदसूत्रों ना निर्युक्ति-भाष्योमां कह्यो छे के-जे साधु डुंगली, लसन, सूरण, बटाटा, रंगणा, गाजर, मूला, सकरकंद, आदु-प्रमुख अनुचित वस्तुना शाक-चटणी विगेरें राधेला तइयार निरारंभी शुद्ध मिल्यो छे एम जाणीने लेइने खाय तो तेने महानिध्वंस परिणामि कह्यो छे, तेने गुरु चौमासी - दंड लिख्यो छे ने तमोगुणी कह्यो, तिवारें मांस खावा वात क्या रही ? अपितु क्यांहिं पण न होय माटें
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