Book Title: Hamare Jyotirdhar Acharya Author(s): Pratapmuni Publisher: Z_Munidway_Abhinandan_Granth_012006.pdf View full book textPage 5
________________ हमारे ज्योतिर्धर आचार्य ३६७ में नभमार्ग से विचित्र ढंग के रुपयों की बरसात आदि-आदि चमत्कार पूज्यप्रवर के उच्चातिउच्चकोटि के संयम का संस्मरण करवा रहे हैं। अपनी प्रखर प्रतिभा, उत्कृष्ट चारित्र और असरकारक वाणी के कारण जनता के इतने प्रिय हो गये कि-- भविष्य में आपके आज्ञानुगामी सन्त-सती समूह को जनता "पूज्य श्री हुक्मीचन्द जी म. सा. के सम्प्रदाय के" नाम से पुकारने लगी। इस प्रकार लगभग अड़तीस वर्ष पाँच मास तक शुद्ध संयम का परिपालन कर चारित्र चूड़ामणि श्रमण श्रेष्ठ पूज्य श्री हक्मीचन्दजी म. सा. का वैशाख शुक्ला ५ संवत् १९१७ मंगलवार को जावद शहर में समाधिपूर्वक स्वर्गवास हुआ। तत्पश्चात् सांघिक सर्व उत्तरदायित्व आपके गुरु भ्राता पूज्य श्री शिवलालजी म० को संभालना जरूरी हुआ, जिनका परिचय इस प्रकार है। आचार्य श्री शिवलालजी महाराज साहब जन्म गांव--धामनिया (नीमच) १८वीं सदी में । दीक्षा संवत्-१८६१ । दीक्षागुरु-आचार्य श्री लालचन्दजी म० । स्वर्गवास--सं० १९३३ पौष शुक्ला ६ रविवार । आपकी पावन जन्मस्थली मालवा प्रान्त में धामनिया (नीमच) ग्राम था । संवत् १८९१ में आपने दीक्षा अंगीकार की थी। स्व० पूज्य श्री हुकमीचन्दजी म० की तरह ही आप भी शास्त्रमर्मज्ञ, स्वाध्यायी व आचार-विचार में महान् निष्ठावान-श्रद्धावान थे। न्याय एवं व्याकरण विषय के अच्छे ज्ञाता के साथ-साथ स्व-मत पर-मत मीमांसा में भी आप कुशल कोविद माने जाते थे। आप यदा-कदा भक्ति भरे व जीवन स्पर्शी, उपदेशी कवित्त भजन लावणिया मी रचा करते थे। जो सम्प्रति पूर्ण साधनामाव के कारण अप्रकाशित अवस्था में ही रह गये है। आपके प्रवचन तात्त्विक विचारों से ओत-प्रोत जनसाधारण की भाव भाषा में ही हआ करते थे। और सरल भाषा के माध्यम से ही आप अपने विचारों को जन-मन तक पहुंचाने में सफल भी हुए हैं। जिज्ञासुओं की शंकाओं का समाधान भी आप शास्त्रीय मान्यतानुसार अनोखे ढंग से किया करते थे। निरन्तर छत्तीस वर्ष तक एकान्तर तपाराधना कर कर्म कीट को धोने में प्रयत्नशील रहे थे। वे पारणे में कभी-कभी दूध, घी आदि विगयों का परित्याग भी किया करते थे । इस प्रकार काफी वर्षों तक शुद्ध संयम का परिपालन कर व चतुर्विध संघ की खूब अभिवृद्धि कर सं० १९३३ पौष शुक्ला ६ रविवार के दिन आप दिवंगत हुए । कुलाचार्य के रूप में भी आप विख्यात थे। पूज्यप्रवर श्री उदयसागरजी महाराज जन्म गाँव-जोधपुर सं० १८७६ पौष मास । दीक्षा संवत्-१८६८ चैत्र शुक्ला ११ । दीक्षागुरु-मुनि श्री हर्षचन्दजी म० । स्वर्गवास--सं० १९५४ माघ शुक्ला १३ रतलाम । पूज्यश्री शिवलालजी म. सा. के दिवंगत होने के पश्चात् सम्प्रदाय की बागडोर आपके कर-कमलों में शोभित हुई। आपका जन्म स्थान जोधपुर है । खिवेंसरा गोत्रीय ओसवाल श्रेष्ठी श्री नथमलजी की धर्मपत्नी श्रीमती जीवाबाई की कुक्षि से सं० १८७६ के पौष मास में आपका जन्म हुआ। समयानुसार ज्ञानाभ्यास, कुछ अंशों में धन्धा, रोजगार भी सिखाया गया और साथ ही साथ लघु वय में ही आपका सगपण भी कर दिया गया था। वस्तुत: कुछ नैमित्तिक कारणों से और विकासोन्मुखी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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