Book Title: Gyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Author(s): Kiran Tondon
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 10
________________ जिले की दिगम्बर जैन समाज के सातिशय पुण्य के उदय से इस राजस्थान की जन्मस्थली, कर्मस्थली बना कर पवित्र करने वाले तथा चार-चार संस्कृत महाकाव्यों सहित 30 ग्रन्थों के सृजेता बाल ब्रह्मचारी महाकवि आ. श्री ज्ञासागरजी महाराज द्वारा श्रमण संस्कृति के उननायक जिन शासन् प्रभावक आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज को दीक्षा देकर अजमेर क्षेत्र को पवित्र किया है । ऐसी इस पावन भूमि पर चिर अन्तराल के बाद संत शिरोमणी आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के परम् शिष्य आध्यात्मिक संत मुनि श्री सुधासागरजी महाराज, क्षु. श्री गम्भीरसागरजी, क्षु. श्री धैर्यसागरजी का पावन वर्ष 1994 में वर्षायोग हुआ । इसी वर्षा योग में सरकार, समाज एवं साधु की संगति ने इस जिले को आध्यात्मिक वास्तुकला को स्थापित करने के लिए नारेली ग्राम के उपवन को तीर्थक्षेत्र में परिवर्तित करने के लिये चुना । सच्चे पुरुषार्थ में अच्छे फल शीघ्र ही लगते हैं ऐसी कहावत है । तद्नुसार 4 माह के अन्दर ही अजमेर से 10 कि.मी. दूर नारेली ग्राम में किशनगढ़-ब्यावर बाईपास पर एक विशाल पर्वत सहित 127.5 बीघा का भूखण्ड दिगम्बर जैन समाज को सरकार से आवंटित किया गया जिसका नामकरण आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज एवं मुनि श्री सुधासागरजी महाराज के आशीवाद से "ज्ञानोदय तीर्थ" ऐसा मांगलिक पवित्र नाम रखा गया । इस क्षेत्र का संचालन दिगम्बर जैन समिति (रजि.) अजमेर द्वारा किया जाता है । इस क्षेत्र पर निम्न योजनाओं का संकल्प जिला स्तरीय दिगम्बर जैन समाज में किया है। . 1. त्रिमूर्ति जिनालय (मूल जिनालय) - इस महाजिनालय में अष्टधातु की 11-11 फुट उतंग तीर्थंकर, चक्रवर्ती कामदेव जैसे महा पुण्यशाली पदों को एक साथ प्राप्त कर महा निर्वाण को प्राप्त करने वाले श्री शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरहनाथ के जिन बिम्ब विराजमान किये जावेंगे । यह जिनालय एस क्षेत्र को मूलनायक के नाम से प्रसिद्ध होगा। 2. श्री नन्दीश्वर जिनालय - यह वही जिनालय है जिसकी वन्दना शायद सम्यग्दृष्टि एक भवतारी सौधर्म इन्द्र अपने परिकर सहित वर्ष की तीनों अष्टानिका पर्व में जाकर निरन्तर ८ दिन तक पूजन अभिषेक कर अपने जीवन को धन्य बनाता है । यह नन्दीश्वर द्वीप जम्बूदीप से आठवें स्थान पर पड़ता है । अतः वहां पर मनुष्यों का जाना सम्भव नहीं है । एतर्थ उस नन्दीश्वर दीप के 52 जिनालयों को स्थापना निक्षेप से इस क्षेत्र में भव्य जीवों के दर्शनार्थ इस जिनालय की स्थापना की जा रही है ।

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