Book Title: Gyanbindu Prakarana
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Sukhlal Sanghavi
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 240
________________ ५. ज्ञानबिन्दुटिप्पणगतानां पारिभाषिकश १३३ ८४.१९. योगिज्ञान पमाय (प्रमाद) ७९.१७. | मतिज्ञान ६८.१४;६९.९,१४,२८,१००.१८; परमोहि (परमावधि) १०६.११. १०१.२९,१०२.१,१०५.१२,११७.२६. परब्यावृत्तिरूप १०२.३३. मतिज्ञानादि ५१.२६. परिज्ञा ८०.४. मनःपर्याय १०७.३. परिज्ञोपचित ८०.२८,८१.४,२०. मनस् १०८.२६:१०९.१६. परोक्ष १०२.१. मरण १०८.१७. पाणिवह (प्राणिवध) ८३.१९. मल्लक-प्रतिबोधक १०१.१. पाप ९०.१८. महावाक्यार्थ ७५.४. पुण्य ९०.१०. माया ११२.२३. प्रकृति ६४.३४. मुक्तशरन्याय २८.१९. प्रतीत्यसमुत्पाद १०८.४. मोहनीय ६७.१७. प्रत्यक्ष ११७.१९. [य-ल] प्रत्यवस्थान ७३.३२. युगपदुपयोग ११५.१२,१८. प्रदेशोदय ६७.१८. योग ९६.९. प्रपञ्चोत्पत्ति ६०.८. योगजधर्म १०९.२१. प्रमत्त १०९.१०. प्रमत्तयोग ८९.२३. रसस्पर्धक ६२.२३,६४.१९. प्रमा १०९.१७. लब्धितः [ मतिश्रुत] ७१.१६. प्रमाणान्तर १०९.१६. लोचकर्मविधि प्रमाद ८९.२३. प्रमादपञ्चक ८६.२१. [व] ११७.३२. वचनपर्याय १०२.३३. प्राकव्य प्राण ८५.१०,१७. ६२.२७. प्राणवध ६२.२८,६३.१२. प्राणव्यपरोपण ९०.९. वल्क-शुम्ब प्राणातिपात ८१.२२,८४.२१,८५.७,२३,८६.१२. वाक्यार्थ ७५.४,९८.१८. प्राणिवध ८५.२८. वाक्यार्थज्ञान ११४.१३. प्रातिम १०८.३२. वासना १११.२०. प्रामाण्य १०४.१७,२८. वास्यवासकभाव १११.१८. विज्ञान -१०८.१२. [व-भ] विनाश वन्ध ९०.३४,९५.१,११४.१२. विपाकोदय ६७.१८. ब्रह्मज्ञान १०९.६,११२.१३. विपाकोदयविष्कम्भ ६६.३०. ब्रह्मन् ६०.२३,९०.२६. विषय १०४.२०. भव १०८.१६. वृत्ति -९८.१९:११०.२६. भवान्त ८२.२५. वेदकसम्यत्तव ६६.१६. भावतः हिंसा ९०.१२. वेदना १०८.१५. भावना १०८.२४,१०९.६. व्याख्या ७४.१०. भावनाप्रकर्षजन्यत्व १०९.१०. [श] भावनामय ९८.१८७१११.१. भावश्रुत ६८.२,७०.३,७१.३३. ११४.१२. भावेन्द्रियज्ञान ७२.१६. शब्दार्थ ९८.२१. शब्दार्थपर्यालोचन ७१.२९. मति ... १०६... शाब्दबोध वर्ग ८७.१४... वर्गणा ७४.२६. शक्ति शब्द [म] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 238 239 240 241 242 243 244