Book Title: Gyanbindu Parichaya
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 77
________________ केवल ज्ञान दर्शनोपयोग ४५९. २. २१ ] की जो समालोचना की है उसी से सिद्ध है । यह तो हुई हरिभद्रीय कथन के आधार की बात । हम श्रभयदेव के कथन के आधार पर विचार करते हैं। अभयदेव सूरि के सामने जिनभद्र क्षमाश्रमण का क्रमवादसमर्थक साहित्य रहा जो आज भी उपलब्ध है । तथा उन्होंने सिद्धसेन दिवाकर के सन्मतितर्क पर तो अतिविस्तृत टीका ही लिखी है कि जिसमें दिवाकर ने अभेदवाद का स्वयं मार्मिक स्पष्टीकरण किया है । इस तरह अभयदेव के वादों के पुरस्कर्तासंबंधी नाम वाले कथन में जो क्रमवाद के पुरस्कर्ता रूप से जिनभद्र का तथा भेदवाद के पुरस्कर्ता रूप से सिद्धसेन दिवाकर का उल्लेख है वह तो साधार है ही; पर युगपवाद के पुरस्कर्ता रूप से मल्लवादि को दरसानेवाला जो अभयदेव का कथन है उसका आधार क्या है ? यह प्रश्न अवश्य होता है । जैन परंपरा में मल्लवादी नाम के कई श्राचार्य हुए माने जाते हैं पर युगपद् वाद के पुरस्कर्ता रूप से अभयदेव के द्वारा निर्दिष्ट मल्लवादी वही वादिमुख्य संभव हैं जिनका रचा 'द्वादशारनयचक्र' है और जिन्होंने दिवाकर के सन्मतितर्क पर भी टीका लिखी थी जो कि उपलब्ध नहीं है । यद्यपि द्वादशारनयचक्र अखंड रूप से उपलब्ध नहीं है पर वह सिंहगणी क्षमाश्रमण कृत टीका के साथ खंडित प्रतीक रूप में उपलब्ध है । अभी हमने उस सारे सटीक नयचक्र का अवलोकन करके देखा तो उसमें कहीं भी केवलज्ञान और केवलदर्शन के संबंध में प्रचलित उपर्युक्त वादों पर थोड़ी भी चर्चा नहीं मिली । यद्यपि सन्मतितर्क की मल्लवादिकृत टीका उपलब्ध नहीं है पर जब मल्लवादि अभेद समर्थक दिवाकर के ग्रन्थ पर टीका लिखें तब यह कैसे माना जा सकता है कि उन्होंने दिवाकर के ग्रन्थ की व्याख्या लिखते समय उसी में उनके विरुद्ध अपना युगपत् पक्ष किसी तरह स्थापित किया हो। इस तरह जब हम सोचते हैं तब यह नहीं कह सकते हैं कि अभयदेव के युगपद् वाद के पुरस्कर्ता रूप से मल्लवादि के उल्लेख का आधार नयचक्र या उनकी सन्मतिटीका में से रहा होगा | अगर अभयदेव का उक्त उल्लेखांश श्रभ्रान्त एवं साधार है तो अधिक से अधिक हम यही कल्पना कर सकते हैं कि मल्लवादि का कोई अन्य युगपत् पक्ष समर्थक छोटा बड़ा ग्रन्थ अभयदेव के सामने रहा होगा अथवा ऐसे मन्तव्य वाला कोई उल्लेख उन्हें मिला होगा । श्रस्तु | जो कुछ हो पर इस समय हमारे सामने इतनी वस्तु निश्चित } १ 'उक्तं च वादिमुख्येन श्रीमल्लवादिना सन्मती' अनेकान्तजयपताका टीका, पृ० ११६ | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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