Book Title: Guruswadhyaya tatha Bhas
Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 8
________________ २४ अनुसन्धान-५९ सोमदत्त सङ्घाहिव सुणीइ, तेहना करणी अदभुत भणीइ, अट्ठोत्तर अट्ठोत्तर नङ्गे, वीससत्त पोसाल सुचङ्गे ॥४२॥ रूप सहित बहु कलप लिखावी, चन्द्रूआ चउसाल करावी, ठवणी कवली२२ वडा विवेक, पाट पमुह इम नङ्ग अनेक ॥४३॥ पण्डितपद उवज्झाय वखाणउं, पवत्तणि-गणिपद पार न जाणउं, चेला-चेली दीक्षा लेणा, कीधां काज गुरि लाखीणा ॥४४॥ उदयनन्दि-सूरसुन्दरसूरि, रयणमण्डण-सोमजय गुणपूरि, तास सीस गुणमणिसञ्जतो, पट्टणि अमरभवनि सम्पत्तो ॥४५॥ पनरइगुणहुत्तरि(१५६९), मागसिर शुदि धुरि, तेरसि दिन निरवाण गुरो, बहु चन्दनि दाहो,सुगय उमाहो२३, देवलोकि तिय सुणिय सुरो ॥४६॥ खीरसमुद्र समु को सागर, रयणायर सम रयण न आगर, मन्दर मेरु समु नवि होई, एइ गुरु समु सुगुरु नहीं कोई ॥४७॥ जलधर सम को नहीं उवयारी, सुरतरु सम तरु नहीं संसारी, चिन्तामणि सम रयण न लहीइ, एह गुरु समु सुगुरु कुण कहीइ ॥४८॥ जु घरिं सम्पति वर गोखीर, तु किम पीजइ खारुं नीर, जु एह गुरुनुं जपीइ नाम, सेवा अवर सुगुरि कुण काम ॥४९॥ समयरयण जय पण्डितराओ, तास सीस मनि आणी भाओ, मुनि लावण्यसमय इम बोलइ, कोइ न सदगुरु एह गुरु तोलइ ॥५०॥ सिरिलच्छीसायर, पट्टदिवायर, श्रीइन्द्रनन्दिसूरीसरू ए, मन रङ्गिइं गाया, सहि गुरुराया, चतुर्विधश्रीसङ्घ जयकरु ए ॥५१॥ ॥ इति गुरूणां स्वाध्यायः ॥

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