Book Title: Guruswadhyaya tatha Bhas
Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 7
________________ जून - २०१२ बन्ध्या तलीआँतोरण त्राटो१५, गण१६ गाइं गण गन्ध्रव भाटो, भरहभेद नाटक नवरङ्गा, नाचइ नवला पात्र सुचङ्गा ॥२८॥ वीनवी(वि)आ गुरि ठवी आवासो, सयल सङ्घ मनि अति उल्लासो, सुणिअ टड्क लहु सहस पञ्चासो, वेचिअ वित्त पूगी पहु आसो ॥२९॥ माडि१७ सावटू१८ वेढ सौवर्ण, दीजइ नानाविध आभर्ण, सन्तोष्या मागणजन मन्न, गणधरपदि थाप्या गुरु धन्न ॥३०॥ मेलिअ मुनिवर्से, अति गहगढ़े, लच्छीसायरसूरिवरं, अप्पिअ निअपढें, पुहवि पयर्टी, इन्द्रनन्दिसूरीन्द्रगुरुं ॥३१॥ महिमण्डलि गुरु करइ विहारो, अहनिसि उच्छव जय-जयकारो, सम्पत्ता गुरु अहमदावादे, गाइं गोरी नवलइ नादे ॥३२॥ दर्शन विविध वस्त्र विहरावी, मडि सावटू सङ्घ पहिरावी, दोसी पञ्चायणि सुगरिठा, काराविअ बहु बिम्बपइट्ठा ॥३३।। पडिमा रूप कणय सञ्जुत्ता, तेर सेर परमाण पवित्ता, वर प्रतिट्ठ घण भावि करावी, कलसराजि भण्डार भरावी ॥३४॥ वीरनगरि मन्त्रीदेवदासे, गुरु पधराव्या पुण्यप्रकाशे, समकितनांदि नवल मण्डाण, मोदक कलसी आठ प्रमाण ॥३५॥ मडि-मुद्रा सारी, दत्त दिवारी१९, देवदास भवभय हरइ ए, जन त्रिसट्ठि सत्थिई, एह गुरुहत्थिई, शीलवत आदरइ ए ॥३६।। सिरि वटपद्रि मन्त्रिवर गङ्गे, गणधरपद कारावइ रङ्गे, मडि सावटू दीइ मन हरसे, साह पूनागर साठा वरसे ॥३७॥ वस्तुपाल इणि अणहिलवाडइ, बिम्बप्रतिष्ठा देख दिखाडइ,२० सङ्घपूज सावटू प्रदान, दीजइ सकल सङ्घ बहुमान ॥३८॥ सङ्घपति कर्मण धर्माधारो, हरषागर दोसी दातारो, पोढां२२ पुस्तक लक्ष लिखावइ, गुरुवारइ भण्डार भरावइ ॥३९॥ व्यव श्रीराजि वित्त घण दीधा, पट्टणि गुरि गणधरपद कीधा, श्रीसौभाग्यनन्दिगुरु वन्दो, सिरिप्रमोदसुन्दरसूरिन्दो ॥४०॥ गुरि सुजसपयासी, अमन उल्लासी, गच्छ चउरासी विवहपरे, पहिराव्या रङ्गिइं, नव-नव जागई, सवि सन्तोष्या सुपरिकरे ॥४१॥

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