Book Title: Guruswadhyaya tatha Bhas
Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
Catalog link: https://jainqq.org/explore/229448/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जून - २०१२ १७ इन्दनन्दि गुरुस्वाध्याय तथा भास -- मुनिसुयशचन्द्र - सुजसचन्द्रविजयौ अहँ नमः ऐं नमः प्रथमकृतिसारांश 'सज्झाय' ए प्राकृत शब्दनो गुजराती पर्याय एटले ज स्वाध्याय. प्रस्तुत कृति 'गुरुस्वाध्याय' ए नामनी ऐतिहासिक कृति छे. कृतिनां शरुआतनां पद्योमां कवि वीरप्रभुना प्रथम पट्टधर सुधर्मास्वामीथी पोताना प्रगुरु श्री इन्द्रनन्दिसूरिसुधीना आचार्योनी स्तुति करे छे. त्यार पछी १३ मी गाथाथी कविए इन्द्रनन्दिसूरिजीना जीवनचरित्रविषयक जन्म, दीक्षा, पदप्रदान, प्रतिष्ठादि प्रसङ्गोनुं रोचक शैलीमा वर्णन कर्यु छे. अन्त्य पद्योमा गुरुनी उपमा- अने पोतानी परम्परानुं वर्णन करी काव्य पूर्ण कर्यु छे. इन्द्रनन्दिसूरिनुं चरित्र : (प्रथम कृतिने आधारे) मरुधर (मारवाड) देशना पुरपाटणमां चम्पकशाह नामे व्यवहारीनी सीतादेवी नामे पत्नीनी कुखे सं. १४१८ ना मागसर सुद ७ना दिवसे तेमनो जन्म थयो. जन्म महोत्सव करी तेमनुं देवराज ए प्रमाणे नाम करायुं. धर्मनी भावना वाळा तेमने सं. १५०८ मां उदयनन्दिसूरिए ‘इन्द्रनन्दि' ए नाम आपी दीक्षित करी अभ्यासने माटे रत्नशेखरसूरिनी समयशाखामां थयेला मोटा तार्किक रत्नमण्डनसूरिना शिष्य सोमजयसूरि पासे अभ्यासार्थे मोकल्या. विद्याभ्यासनी तेमज चारित्रनी परिणतिवाळा मुनि इन्द्रनन्दिने सं. १५३०मां सिद्धपुरमां श्रीसोमजयसूरिए पोताना हाथे गणिपद आप्यु. सं. १५४१मां अमदावादना साणंद तथा सोनी अंबपता हरिचंदे पूज्यश्रीनी निश्रामां तीर्थनगरी इडरनो संघ काढ्यो. त्यां पूज्यश्रीए युगादिदेवने जुहारी गच्छनायक लक्ष्मीसागरसूरिने वन्दना करी. अहींथी संघपति हरिचंदे संघ काढ्यो. गच्छनायक लक्ष्मीसागरसूरि पण परिवार सहित पधार्या. विविध प्रकारना नाट्यादि खेलोथी अने दानादिथी शोभता ते अवसरे पूज्य इन्द्रनन्दि गणिने गणधर (आचार्य)पद अपायु. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ अनुसन्धान-५९ अनुक्रमे गुरु विहार करता अमदावाद पधार्या. अहीं दोसी पंचायणे १३ शेर प्रमाण रू' कनकथी युक्त एवी प्रतिमानी तेमज कळशनी श्रेणीओनी प्रतिष्ठा सूरिजीने हाथे करावी. त्यांथी वीरनगरमा मन्त्री देवदासे गुरुनी पधरामणी करी, तेमज ६३ श्रावको साथे शीलव्रत उच्चपुं. विहार करी गुरु वटपद्र (वडोदरा) पधार्या त्यारे अहींना गंग मन्त्रीए गुरुना गणधर पदनो महोत्सव को. शाह पूनागरे मङि-सावटू विगेरेनी लाणी करी. अणहिल्लवाडमां वस्तुपाले प्रतिष्ठा महोत्सव को [देखदेखाडवू एटले प्रसंग बताववो ?] तेमज सावटू आपवा पूर्वक संघपूजा करी. गुरुना ज समयमा संघपति कर्मण अने हर्षागर दोसीए पुस्तको लखावी भण्डार कराव्यो हतो. पाटणमां ज्यारे गुरुए श्रीसौभाग्यनन्दिने अने प्रमोदसुन्दरने गणधर पद आप्युं त्यारे संघपति श्रीराजे घणुं धन वापर्यु अने ८४ गच्छने विविध पहेरामणीथी सन्तोष्या. आ प्रसंगे संघपति सोमदत्ते २७ पोषधशाळा, रूपा सहितना कल्पसूत्रनुं लेखन, मोटा चन्दरवा, ठवणी प्रमुख घणी धर्मसामग्री करावी. (कृतिमां वपरायेल नंग शब्द रत्न माटे होय तो ७८ रत्ने पौषधशाळा अने बीजा घणा रत्ने धर्मना उपकरणो कराव्या एम समजवू पडे). वळी आ प्रसंगे पण्डितपद, उपाध्यायपद, प्रवर्त्तिनीपद, गणिपदनी साथे घणां पुरुष-स्त्रीनी दीक्षाओ पण थई. आम अनेक शासन-प्रभावनानां कार्यो करी सं. १५६७मां मागसर सुद १३ना गुरुवारे पाटणमां तेमनो स्वर्गवास थयो. काव्य, मूल्य विविध दृष्टिए ___कर्माशाकृत शान्तिनाथप्रासाद-सप्तमोद्धारप्रशस्ति, विमलप्रबन्ध, सुमतिसाधु विवाहलो जेवी घणी ऐतिहासिक कृतिओनी रचना कवि लावण्यसमये करी छे. प्रस्तुत कृति नानी होवा छतां ऐतिहासिक दृष्टिए महत्त्वनी छे. इन्द्रनन्दिसूरिजीना चरित्र उपरांत दोसी पंचायणे करावेल बिम्बनी प्रतिष्ठा, पाटणमां वस्तुपाले करावेल प्रतिष्ठा, श्रावक सोमदत्ते करावेल २७ पौषधशाळा इत्यादि नोंधो इतिहासनी कडीरूप छे. तो सामाजिक दृष्टिए जन्मोत्सव करी नामकरण करवानी, अन्य साधु पासे भणवा मोकलवानी, विशिष्ट प्रसङ्गोए सङ्घभक्तिरूप ल्हाणीनी, संयमीना काळधर्म प्रसङ्गे तेमना देहनो अग्निसंस्कार करवानी विगेरे रिवाजोनी नोंध महत्त्वनी छे. भाषाकीय दृष्टिए ए काळे वपराता मडि, सावटू, जङ्गपरा, सइं जेवा शब्दो पण तेटलाज महत्त्वना छे. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जून २०१२ द्वितीयकृतिसारांश : कविए इन्द्रसूरिजीने उद्देशीने अन्य एक कृति रची छे. ते गुरुभास सड्जक रचना होई जीवनचरित्र पर प्रकाश पाडनारी कृति होवी जोइए. परंतु कृतिमां इन्द्रनन्दिसूरिजीना पिताना नाम सिवाय अन्य कशी विशेष नोंध नथी. कृति सामान्य छे. कविए गुरुना गुणोनुं वर्णन सहिअरने मुखे रजू कर्तुं छे. कृतिकार अने तेनी अप्रगट अन्य रचनाओ कृतिकार लावण्यसमय एक सुप्रसिद्ध कवि छे. रङ्गरत्नाकरछन्द, विमलप्रबन्ध जेवां काव्यो तेमना कवित्वनो परिचय आपतां अजोड काव्यो छे. कविनो विशेष परिचय अहीं न आपता वाचकोने 'रङ्गरत्नाकरछन्द'नी शिवलाल जेसलपुरानी के भोगीलाल साण्डेसरानी प्रस्तावना जोवा विनंती. कविनी हजु प्रायः ४१ जेटली कृतिओ अप्रगट छे. अहीं तेनी सामान्य नोंध आपी छे. विस्तृत नोंध माटे दर्शनाबेन कोठारीनुं साहित्यसूचि पुस्तक जोवा वाचकोने विनंती. कृतिनाम अध्यात्मस्वाध्याय २ अन्तरङ्ग गीत १ ३ आठमद स्वाध्याय ४ आत्मजीवस्वाध्याय ओगणत्रीसीभावना ५ ६ कायाप्रतिबोधस्वाध्याय क कृतिनाम १५ ते गुरवा स्वाध्याय १६ दाननी सज्झाय १७ दृढप्रहारी गीत ६ | १८ दृढप्रहारी सज्झाय १९ नवग्रहगर्भित गीत ७ २० नेमराजुल स्तवन १२ २१ नेमजिनस्तवन २३ २२ पञ्चइन्द्रियगीत २३ पञ्चतीर्थस्तवन २४ नवपल्लवपार्श्वनाथ १९ ७ कांकसा गीत ८ गोडी पार्श्वनाथ गीत ९ गोरी सांवली गीत विवाद १० गौतमस्वामीनुं स्तवन ९ ११ गौतमस्वामीनी स्तुति १२ चौदस्वप्न स्तवन १३ छोती चतुष्पदी १० ४६/२५ २५ पुण्यपापफल भास ६८ २६ बलभद्रस्वाध्याय १४ जीवराशि खामणा विधि १४७ २७ मनमांकड स्वाध्याय प्रभाति स्तवन कडी ८ १२ १२ २४/१२ ४ १९ ३५ / ३८ १० २९ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० अनुसन्धान-५९ स्तवन २८ महावीर स्तुति ५ ३६ सार सिखामण २९ राजीमती गीत ३७ सांतराइमण्डण सुपार्श्वनाथ ३० राजीमती विनती स्तवन ९ ३१ शिखामण स्वाध्याय ३८ सुभाषित ३२ श्रावकविधि सज्झाय ३१ | ३९ सूर्यदीपवाद छन्द ३३ सरस्वती छन्द | ४० स्थूलिभद्र गीत ३४ सातवारनी सज्झाय ८ ४१ हरियाली ३५ सातवार भास ४२ हितशिक्षा सज्झाय शब्दकोश (प्रथम कृतिनो) १. रम्मो = सुंदर १३. जंगमोयक्षर = ? २. जुगहपहाणो = युगप्रधान १४. तलीआ = तोरणनो एक प्रकार ३. नाह = नाथ, पति १५. त्राटो = तोरण, वांसनी पट्टीओनो पडदो ४. जंगपरा = मोटा उत्सव साथे १६. गण = गुण ५. परतिअ = प्रत्यक्ष १७. माडि, मडि = पूजानां वस्त्रो(?) ६. अप्पिअ = आप्यो १८. सावटू = रेशमी जरीयान वस्त्र ७. पढेवा = भणवा १९. दिवारी = देवडावq, अपावQ ८. पयासइ = प्रकाशित करवू २०. देख दिखाडइ = प्रसंग देखाडवो(?) ९. परिपरि = २१. पोढां - मोटा १०. विगट = व्यक्त (विशेष प्रसिद्ध) २२. कवली - वांसनी पट्टी अने कापडनुं ११. मतुल्ली = असमान बनेलुं पोथी- एक प्रकारचें बंधन १२. सई = पोताना २३. उमाहो - उत्साह (द्वितीय कृतिनो) १. हेलि = सखि ८. सइजल = पाणी २. गेलि = गम्मत ९. गोविलास = ३. हवि = हवे १०. कुरुमाणी = करमायेल ४. हेली = वर्षा (?) ११. कुठिण = कठिण ५. रेडए = १२. विसहां = ६. कंकालकाल १३. द्रूअ = ध्रुवनो तारो ७. गहिरु = गंभीर १४. नितां = नित्यता (?) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जून - २०१२ गुरुस्वाध्याय ॥ ए ई० ॥ श्रीइन्द्रनन्दिसूरिगुरुभ्यो नमः ॥ दिउ सरसति वाणी, अमिअ समाणी, कविअण धुरि थिर थाइसिउं ए, श्रीइन्द्रनन्दिसूरी, आनन्दपूरी, पट्टपरम्परा गायसिउं ए ॥१॥ वीरपट्टि सामी सोहम्मो, जम्बू प्रभवसामिगुरु रम्मो, सिज्जम्भव जसभद्द सुसाहू, सिरिसम्भूतिविजय भद्रबाहू ॥२॥ थूलिभद्र महागिरि सुहत्थी, इन्द्रदिन्नगुरू सिवसारत्थी, दिन्नसूरि सीहगिरि जाणउं, वयरसेन वज्रसेन वखाणउं ॥३॥ चन्द्रसूरि सामन्तभद्र सुणीइ, देवसूरि प्रद्योतन भणीइ, मानदेव मानतुङ्ग मुणिन्द, वीराचार्य सूरिगुरु चन्द ॥४॥ तासु पट्टि जयदेव यतीस, देवानन्द नमउ सूरीस, श्रीविक्रम नरसिंह नमीजइ, श्रीसमुद्र मानदेव थुणीजइ ॥५॥ घातः- विबुहसूरी कियदुखदूरी, जयानन्द रविपह गुरू ए, जसदेव विमलचन्द, श्रीउद्योतन सर्वदेवसूरीसरू ए ॥६॥ अजितदेवसूरि आनन्दपूरी, विजयदेव सोमप्पहसूरी, सिरिमुनिचन्दसूरिगुरु वन्दउ, अजितसिंहसूरि चिर नन्दउ ॥७॥ विजयसेन मणिरयण सुजाण, सिरिजगचन्दसूरिगुरुभाण, बार वरस अम्बिलतपकारी, वस्तुपाल हूउ तिणिवारी ॥८॥ बारपञ्च्यासी (१२८५)वरस पसिद्धउ, तपा बिरुद मन्तीसरि दिद्धउ, जावजीव अम्बिलतप किद्धउ, जिणि जगि मज्झि सुजस घण लद्धउ ॥९॥ सिरिदेविन्दसूरि मन मोहइ, धम्मघोष सोमप्पह सोहइ, सोमतिलक सच्चउ गुरुराय, जयानन्दसूरि सेवउ पाय ॥१०॥ सिरिदेवसुन्दर सूरिसोमसुन्दर, सिरिमुनिसुन्दर सूरिवरा, गुरुसिरिजयचन्द, धुरि रयणशेखर, सूरिलच्छीसायर लच्छिकरा ॥११॥ तासु पट्टि गुरु पूनिमचन्दो, चउविह सङ्घ करइ आणन्दो, सिरिइन्द्रनन्दिसूरि जुगहपहाणो', महिमा महीअलि मेरु समाणो ॥१२॥ महिमण्डलि मरुदेस महन्तो, तिहि पुर पट्टण वसइ वसन्तो, व्यवहारी धुरी चम्पक साहो, सीतादेवि तणउ ते नाहो ॥१३॥ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ अनुसन्धान- ५९ तासु उअरि लिद्धउ अवतारो, जनमिउ कुंअर कुलसिणगारो, संवत चौदअट्ठाणउं (१४९८) वरसे, मागसिर सुदि सत्तम दिवसे ॥१४॥ कीधा उच्छव अति अभिराम, दिद्धउ देवराज वर नाम, क्रमि क्रमि कुंअर वद्धइ वीर, हिअडइ धम्म तणी मति धीर ॥ १५॥ पनरअट्ठोत्तरि(१५०८), उदयनन्दिसूरि, दिइ संयम बहु जङ्गपरा, गुरि नाम मनोहर, परतिअ + सुन्दर, इन्द्रनन्दि मुनिराजवरा ||१६|| अप्पिअ' सीस सुजस जगि लेवा, श्रीसोमजयसूरिपासि पढेवा, दिन दिन विद्या - विणय पयासइ', ग्रन्थ अच्छअच्छ अहनिसि अभ्यास ||१७|| प्रीछ्या आगम वेद पुराण, प्रीछ्या शास्त्र सकल बन्धाण, जाणइ अङ्ग इग्यार वखाणी, जाणइ जे परिपरि जिनवाणी ॥१८॥ जोइस जोग मर्म जगि जाणइं, विद्या चौद विशेषि वखाणई, विगट " प्रगट ने वादीराय, सीस तणी परि सेवइ पाय ॥ १९॥ पालइ चारित्र निरतीचारा पञ्च समिति त्रिणि गुपति विचारा दसविध चारित्र ही अडइ राखइ, दोष बयालीस चिन्ति न चाख ॥ २०॥ मुनि दिन-दिन वद्धइ, सञ्जम लद्धइ, सीलि सुजस भरइ ए, पूरव रिषि सारा, जम्बूकुमारा, तसु आचारा सिरि धरइ ए ॥२१॥ वाणि सुधारस सरस मतुल्ली, मूरति पेखी मोहणवल्ली, अवसरि सीख सुमति जस अप्पर, गुणवंता गुरु गणिपद थप्पइ ॥२२॥ संवत पन्नरत्रीसा (१५३०) वरसे, पुञ्जराज वित्त वेचइ हरिसे, श्रीसोमजयसूरि सई १२ हत्थिकरणं, सिद्धपुरि पण्डितपद ठवणं ॥२३॥ अहमदावादि वसइ साणन्दो, सोनी अम्बपता हरिचन्दो, मेली सङ्घ पनरइकतालइ (१५४१), ईडरगढि जिन आदि निहालइ ॥२४॥ विगतिई देव युगादि जुहारी, अनुक्रमि तीरथनयर मझारी, भेटिआ सहिगुरु गुणमणिआगर, गछनायक सिरिलखिमीसागर ||२५|| ईडर अहिठांण, भूपति भांण, बहु बहुमांण दिद्धवर, हरिचङ्ग सुरङ्ग, मेलिअ सङ्घ, मण्डइ जङ्गमोयक्षर१३ ॥२६॥ सङ्घ सकल नवि लहीइ पारो, मोटा मागण सहस बिच्च्यारो, गणधर गणनायक गुणवन्तो, मिल्या साधु सुणीआ सइ सत्वो ॥२७॥ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जून - २०१२ बन्ध्या तलीआँतोरण त्राटो१५, गण१६ गाइं गण गन्ध्रव भाटो, भरहभेद नाटक नवरङ्गा, नाचइ नवला पात्र सुचङ्गा ॥२८॥ वीनवी(वि)आ गुरि ठवी आवासो, सयल सङ्घ मनि अति उल्लासो, सुणिअ टड्क लहु सहस पञ्चासो, वेचिअ वित्त पूगी पहु आसो ॥२९॥ माडि१७ सावटू१८ वेढ सौवर्ण, दीजइ नानाविध आभर्ण, सन्तोष्या मागणजन मन्न, गणधरपदि थाप्या गुरु धन्न ॥३०॥ मेलिअ मुनिवर्से, अति गहगढ़े, लच्छीसायरसूरिवरं, अप्पिअ निअपढें, पुहवि पयर्टी, इन्द्रनन्दिसूरीन्द्रगुरुं ॥३१॥ महिमण्डलि गुरु करइ विहारो, अहनिसि उच्छव जय-जयकारो, सम्पत्ता गुरु अहमदावादे, गाइं गोरी नवलइ नादे ॥३२॥ दर्शन विविध वस्त्र विहरावी, मडि सावटू सङ्घ पहिरावी, दोसी पञ्चायणि सुगरिठा, काराविअ बहु बिम्बपइट्ठा ॥३३।। पडिमा रूप कणय सञ्जुत्ता, तेर सेर परमाण पवित्ता, वर प्रतिट्ठ घण भावि करावी, कलसराजि भण्डार भरावी ॥३४॥ वीरनगरि मन्त्रीदेवदासे, गुरु पधराव्या पुण्यप्रकाशे, समकितनांदि नवल मण्डाण, मोदक कलसी आठ प्रमाण ॥३५॥ मडि-मुद्रा सारी, दत्त दिवारी१९, देवदास भवभय हरइ ए, जन त्रिसट्ठि सत्थिई, एह गुरुहत्थिई, शीलवत आदरइ ए ॥३६।। सिरि वटपद्रि मन्त्रिवर गङ्गे, गणधरपद कारावइ रङ्गे, मडि सावटू दीइ मन हरसे, साह पूनागर साठा वरसे ॥३७॥ वस्तुपाल इणि अणहिलवाडइ, बिम्बप्रतिष्ठा देख दिखाडइ,२० सङ्घपूज सावटू प्रदान, दीजइ सकल सङ्घ बहुमान ॥३८॥ सङ्घपति कर्मण धर्माधारो, हरषागर दोसी दातारो, पोढां२२ पुस्तक लक्ष लिखावइ, गुरुवारइ भण्डार भरावइ ॥३९॥ व्यव श्रीराजि वित्त घण दीधा, पट्टणि गुरि गणधरपद कीधा, श्रीसौभाग्यनन्दिगुरु वन्दो, सिरिप्रमोदसुन्दरसूरिन्दो ॥४०॥ गुरि सुजसपयासी, अमन उल्लासी, गच्छ चउरासी विवहपरे, पहिराव्या रङ्गिइं, नव-नव जागई, सवि सन्तोष्या सुपरिकरे ॥४१॥ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ अनुसन्धान-५९ सोमदत्त सङ्घाहिव सुणीइ, तेहना करणी अदभुत भणीइ, अट्ठोत्तर अट्ठोत्तर नङ्गे, वीससत्त पोसाल सुचङ्गे ॥४२॥ रूप सहित बहु कलप लिखावी, चन्द्रूआ चउसाल करावी, ठवणी कवली२२ वडा विवेक, पाट पमुह इम नङ्ग अनेक ॥४३॥ पण्डितपद उवज्झाय वखाणउं, पवत्तणि-गणिपद पार न जाणउं, चेला-चेली दीक्षा लेणा, कीधां काज गुरि लाखीणा ॥४४॥ उदयनन्दि-सूरसुन्दरसूरि, रयणमण्डण-सोमजय गुणपूरि, तास सीस गुणमणिसञ्जतो, पट्टणि अमरभवनि सम्पत्तो ॥४५॥ पनरइगुणहुत्तरि(१५६९), मागसिर शुदि धुरि, तेरसि दिन निरवाण गुरो, बहु चन्दनि दाहो,सुगय उमाहो२३, देवलोकि तिय सुणिय सुरो ॥४६॥ खीरसमुद्र समु को सागर, रयणायर सम रयण न आगर, मन्दर मेरु समु नवि होई, एइ गुरु समु सुगुरु नहीं कोई ॥४७॥ जलधर सम को नहीं उवयारी, सुरतरु सम तरु नहीं संसारी, चिन्तामणि सम रयण न लहीइ, एह गुरु समु सुगुरु कुण कहीइ ॥४८॥ जु घरिं सम्पति वर गोखीर, तु किम पीजइ खारुं नीर, जु एह गुरुनुं जपीइ नाम, सेवा अवर सुगुरि कुण काम ॥४९॥ समयरयण जय पण्डितराओ, तास सीस मनि आणी भाओ, मुनि लावण्यसमय इम बोलइ, कोइ न सदगुरु एह गुरु तोलइ ॥५०॥ सिरिलच्छीसायर, पट्टदिवायर, श्रीइन्द्रनन्दिसूरीसरू ए, मन रङ्गिइं गाया, सहि गुरुराया, चतुर्विधश्रीसङ्घ जयकरु ए ॥५१॥ ॥ इति गुरूणां स्वाध्यायः ॥ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जून २०१२ ॥ श्री इन्द्रनन्दिसूरिभास ॥ ॥ ए६० ॥ श्रीसोमजयसूरिगुरूभ्यो नमः ॥ सरसति सरसति सामणि सेवीइ ए, वरसति वरसति वचनविलास कि, कविजनजननी जाणीइ ए, पणमीय पणमीय पूरइ आस कि, सरसति सामणि सेवीइ ए १ सेविइ सरसति लहीअ अनुमति, धरिअ भगति भलेरडी, आणंद आणी अह्म वाणी, सुणि-नसुणि साहेलडी, गणधर गणागर महिमसागर, हरिखि वंदणि जाईए, श्रीइंद्रनंदिसूरिंद सहगुरु, हेलि' गेलि गाईइ २ २५ धन धन धन धन अम दिन आजनु ए, सरसि ए सरसि ए वंछितकाज कि, सहीअर सवि मनि चीतवए, भेटिसुं भेटिसुं सहगरराज कि, धन धन अहम दिन आजनु ए ३ धन धन्न वर संगार सहिअर, करई रंग रसाली ए, नव रंगि चीरं शरीर सोहईं, घाट - घुग्घुरिआली ए, करि सुरअंतेउरी पायनेउरी, मयणभेरी अवतरी, करि धरिअ थाल विशाल अक्षत, पूरि पदमनि संचरी ४ गणधर गणधर नरखी नयणले ए, हरिखीअ हरिखीअ हृदयमझारि कि, सुंदरि सवि सिरखी मिली ए, बोलइ ए बोलइ ए मंगल च्यार कि गणधर नरखी नयणले ए ५ नयणले निरखीअ हीइं हरखीअ, हवि अहिनिसि आवइ, कुंकुम चावल चउक पूरइ, सुगुरु रंगि विधावए, वर कल्पवेली तिसी हेली, अवर कोई न तोलए, निअ मन आणंदइ नवल छंदिरं, धवल - मंगल बोलइ ६ जलहर जलहर जिम जगि ऊनयउ ए, विरसइ ए विरिसइ ए अचलधार कि, वचनविलास सोहामणउ ए चंदन चंदन शीतल सार कि जलहर जिम जगि ऊनयउए ७ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 26 अनुसन्धान-५९ ऊनयउ जलहर जोइ उत्तर-दिसि निरंतर रेडए", कंकालकाल दकाल दोहिलां, दुखना मुख्य फेडए, जनमन-अरितिहर अनि सुहकर, गयणि गुहिरू गज्जए, तिम सइजल संपूरिउ गुरु, गोविलास' विराजए. 8 किसिमिसि किसिमिसि साकर बिहिनडी ए, बिहिनडि बिहिनडी इणि अहिनाण कि, कुरुमाणी° कुठिण११ हूईए, पेखीअ पेखीअ सहिगुर वाणि कि 9 किसिमिसि साकर बिहिनडी ए बहिनडी किसिमिसि अनइ साकर, सुगुरवाणि सरस जि सुणी, सुर-असुर-कन्नर-नाग-नरवर, रंजिइ त्रिभुवनधणी, किसिमिसि निरंतर एवडए अंतर, पेखि दुखि करमाणी ए, निम हुईअ साकर कठिण काकर, मधुर गणधरवाणिए 10 सुरतरु सुरतरु समवडि सोहीइ ए, मोहीइ मोहीइ जनमनवृंद कि, किंद अमीअ तणउ(इ) जीभडी ए, मुख जिम पूनिमचंद कि 11 सुरतरु समवडि सोहीइ ए सोहीइ सुरु(र)ति स्या सहि गुरु, क्षमासागर जाणीइं, बहु नयर-देसि विदेसि आगरि, जय करंत वखाणिइं, चारित्रकमला धरइ विमला, बहु प्रतापिइ दीपए, श्रीइंद्रनंदिसूरिंद केरी, आण कोई न लोपए. 12 श्रीसोम श्रीसोमजयसूरीसरू ए, सासए सासए सीस सिरोमणि तास कि, मुनिलावण्यसमय भणइ ए, वंदओ वंदओ धरिअ उल्लास कि, श्रीसोमजयसूरीसरू ए 13 सूरीसरू श्रीसोमजयसूरि, सीसविसहां १२दीपए, श्रीइंद्रनंदिसूरिंद हेलां, वादिगजघट जीपए, चंपराज कुलि अवतंस तपगछि, जयु जयु गुरु तां ल[ग]इ सुरगिरि सुधाकर सूर सागर, दूअ१३ नितां [जां] १४लगइं // श्रीइंद्रनंदिसूरिराज भाषा समाप्ति /