Book Title: Gurusthapana Shatak Author(s): Vinaysagar Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 5
________________ जान्युआरी-2007 पढमे य पंचमंगे य वियारिए इत्थ होइ सुहबुद्धी । ता आलंबिय भाउय ! एगपयं गच्छ मा मिच्छं ॥२३॥ साहूणं विणएणं वयणपरेणं च तह य सेवाए । समणोवासगनामं लब्भइ न हु अन्नहा कहवि ॥२४॥ जो सुणइ सुगुरुवयणं अत्थं वावेइ सत्तखित्तेसु । कुणइ य सदणुट्टा(ट्ठा)णं भन्नइ सो सावओ तेण ॥२५।। जं निज्जइ जिणधम्मं जं लब्भइ सुत्त-अत्थपेयालं । सो पुण साहुपसाओ ता मा होहिसि कयग्घेण ॥२६॥ सव्वा सामायारी उवएसवसेण लब्भइ मुणीणं । सा पुण सुंदरबुद्धी कीरइ जं अणुवएसेण ॥२७॥ संभिन्नसुयस्सऽत्थं सुसंजओ वि हु न तीरए कहिउं । ता तुच्छमई सड्ढो कह होइ वियारणसमत्थो ॥२८।। केवलमभिन्नसुयं मनिज्जइ विवरणासमत्थेहिं । तं पुण मिच्छत्तपयं जह भणियं पुव्वसूरीहिं ॥२९॥ अपरिच्छियसुयनिहस्स केवलमभित्रसुत्तचारिस्स। सव्वुज्जमेण वि कयं अन्नाणतवे बहुं पडइ ॥३०॥ केई भणंति इहि सुसावया संति इत्थ नो साहू । तं पुण वितहं जम्हा न हु कोई कामदेवपए ॥३१॥ सिरि सुहमसामिणा जं सुत्तम्मि परूवियं तहच्चेव । साहुपरंपरएणं अज्ज वि भासंति भवभीरू ॥३२।। "जं अन्नाणी कम्म खवेइ बहुयाहि वासकोडीहिं । तं नाणी तिहिं गुत्तो खवेइ ऊसासमित्तेण ॥३३॥" तं पुण विणयाणुगुणं सप्पुरिसाणं हवेइ सुहहेऊ । अविणीयस्स पणस्सइ अहवा वि विवड्डए कुमई ॥३४॥ आयरियाण सगासे सुत्तं अत्थं गहित्तु नीसे सं । तेसिं पुण पडिणीओ वच्चइ रिसिघायगाण गइं ॥३५॥ जाणंता वि य विणयं केई कम्माणुभावदोसेणं । नेच्छंति पउंजित्ता अभिभूया रागदोसेहिं ॥३६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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