Book Title: Gurusthapana Shatak
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 10
________________ 10 अनुसन्धान-३८ छज्जीवणिया उवरि भणंति के वि कम्मरोगिणो सुत्तं / अप्पत्थ अंबरसलुद्धनिवमिव तं तेसिऽणत्थकरं // 93 / / देवे गुरुम्मि संघे भत्तीए सासणम्मि जं महिमं / कीरइ सो आयारो चउत्थठाणम्मि सड्डाणं // 94 // वज्जिज्जा उड्डाहं अन्नेसि हि वि. सावयाण किं चुज्जं / चिंतइ पुण उड्डाहं सासणे हुज्ज सा कहवि // 95 / / खुद्दत्तणपरिहरणं परोवयारे तहेव आउत्तो / अरिहंताई एसो नेयव्वो पंचमो पुरिसो // 95 / / जइ छत्तीस गुणच्चिय गुरुणो ताइ वीस गुणजुत्ता(?) / गिहिणो वि हु जोइज्जा इयव[य?]णाओ परिनिसेहो // 16 // जत्थ य छत्तीस गुणा मिलिया लब्भंति नेय गच्छम्मि / दोहिं चेव गुणेहिं सो वि पमाणीकओ होई // 97 / / जइ गच्छम्मि सुकज्जे सारणा वारणा अकज्जम्मि / ता ववहारनएणं ववहाररउ च्चिय सुसड्ढो 198 / / एएणं भणिएणं गुरुभत्ती होइ परुवयारं च / ता एएसि दुण्ह वि मा हुज्जा कह वि मह विरहो // 99 / / के ई उवएसमिमं सोउं दुम्मति सावया हियए / तं अन्नाणं जम्हा करणिज्जमिणं तु सड्ढाणं // 100 / / सिरिवीरसासणे सत्त निन्हवा आसि जे पुरा तेसि / चउरो सड्डेहिं चिय विबोहिया पवरजुत्तीहिं // 101 // इत्थ य जं पुण भणिए उस्सुयवयणं हविज्ज जइ कहवि / सोहिंतु तं बहुसुया मह उवरिमणुग्गहं काउं // 102 // जिणपवयणस्स सारं संगहिऊणं गुरूवएसेण / इय सीधरेण रइयं नंदउ गुरुठावणासयगं // 103 / / इथि श्रीगुरुस्थापनाशतकसूत्रं समाप्तम् / यादृशं पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखितं मया / यदि शुद्धमशुद्ध वा मम दोषो न दीयते / / लि० रलभद्रेन // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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