Book Title: Gurugun Shattrinshat Shattrinshika
Author(s): Buddhisagarsuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुगुणषटत्रिशितषटत्रिंशिकाबालावोंध. २३९ यद्यपि वेद्य संवेद्य पदने पुहचे नही, स्थिरादिमें आन्यो समकित पामे, पछी ते स्पर्शना ज्ञानी थको अनुभव ज्ञान थकोते भेद रत्नत्रयी परिणमी अभेद रत्नत्रयीने बलें घनघाती खपावीने केवली थाये, तिबारे आठमी द्रष्टि पहोत्यो कहीये. ए गुणे युक्त। तथा चार ४ अनुयोगमां निपुण-द्रव्यानुयोग १, गणितानुयोग २, चरण. करणानुयोग ३, धर्मकथानुयोग ४ ए सर्व मळी ३६ । ए सातमी छत्रीसी जाणवी । अथवा मूळ अनुयोग, उपक्रम जे ते पणे थवानो उद्यम ( उद्योग ) १. वस्तुने विषे समकालीद्योतक गुण ते निक्षेप २, वस्तुनो स्वरूपार्थ-फलार्थ प्रमुख अर्थनी कहेवो ते अनुगम ३. वस्तुना अवस्थांतरीभाव कथक ते नय ४ ए पिण च्यार अनुयोग वीजा जाणवा. ७ ॥ ८॥ नवतत्तण्ण नवबंभगुत्तीगुत्तो नियाणनवरहिओ। नवकॅप्पकयविहारो, छत्तीसगुणो गुरू जयउ ॥९॥ टवार्थ-हवे आठमी छत्रीसी कहे छे-नव तत्त्वना जाण। नववाड ब्रह्मचर्यनी तेना पालक. एकली स्त्री संघातें एकला ब्रह्मचारीयं एक वसतिथे रात्रे वसवो नहीं. १ स्त्रीनां शृंगार विलास विलापनी कथा न कहेवी २, जे पाट, बाजोठे स्त्री बेठी होय ते थांनके बे घडी मांहे पुरुषे बेसवो नहीं, पुरुषने आसने स्त्रीये बे तथा ४ घडी सीम बेसवो नहीं ३, स्त्रीनो मनोहर गुह्य इन्द्री जोवो नहीं ४, ज्यां स्त्री पुरुष भोगवतां हुवे ते कालना शब्दविलास सांभळवा नहीं ५, ब्रह्मचारी पेहेला भोग भोगव्या संभारवा नहीं ६. ब्रह्मचारीये चीकणा आहार करवा नहीं ७, ब्रह्मचारीये अतिमात्रा) आहार करवो नहीं ८ ब्रह्मचारीये शरीरनी शोभा न करवी ९ ए नववाडी पाळे. For Private and Personal Use Only

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