Book Title: Gurugun Shattrinshat Shattrinshika
Author(s): Buddhisagarsuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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गुरुगुणपत्रिंशतषट्त्रिंशिकाबालावबाध. २५७ नाणं च पाणिणं ५ । साहारणे गिलाणम्मि पहुकिच्चं न कुम्वइ ६ ॥३॥ साहूण धम्मकम्माओ, जो भंसेइ उवठियं, । नेआउयस्स, मग्गस्स, अवगारंमि वदृइ ८॥४॥ जिणाणं शंतनाणीणं, अवपणं जे पभासइ ९।आयरिय उवज्झाए, खिसई मंदबुद्धिए १० ॥५॥ तेसिमेव य नाणीणं, सम्मं नो पडितप्पइ ११। पुणो पुणो अहिगरणं, उप्पाए तिस्थभेयए १२ ॥६॥ जाणं आहम्मिए, जोए पउं. जइ पये पये १३। कामे वमित्ता पत्थेइ, इहंमि भविये इय १४ ॥७॥ अभिक्खणं अ बहुस्सुत्तं, जे भासंति बहुस्सुए १५ तह य अतवस्सी य, जे तवस्सित्ति अहं वए १६ ॥८॥ जायतेयेण बहुजणं, अंतो धूमेण हिंसई १७। अकिञ्चमप्पणा काउं, कयमेएण भासइ १८ ॥९॥ नियडुवहि पणिहीए, पलिउंचे साइजोगजुत्ते य १९। बेइ सव्वं मुसं वयसि, अज्झीण झंज्झए सया २० ॥१०॥ अद्धाशूमि पविसित्ता, जो धणं हरइ पाणिणं २१ । वी. सं भित्ता उवाएणं, दारे तस्सेव लुप्पइ २२ ॥११॥ अभिक्खमकुमारेउ, कुमारेहिं च भासए २३ । एवमबंभयारीउ, बंभयारित्तिऽहं वए २४ ॥१२॥
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