Book Title: Gurugun Shattrinshat Shattrinshika
Author(s): Buddhisagarsuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 37
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५२ गुरुगुणषटत्रिंशितषटत्रिंशिकाबा ठावबोध. दग लेवाइ करेमाणे. ॥३॥ गिते अ अदिक्खं, आउहि तहा अगंतवहीयाए; पुढवीयठाण सिज्जं, निसहायं वा वि चेयंते ॥ ४ ॥ मासविंभतर ओस्सायहाणाइतिन्निकूक्कतो पाणायवाउट्टीं कुठते, मुसावयं तेय. ॥५॥ एवं सस्सिद्धा ससरक्खा चित्तमंतग सिलले कोलावासपइट्टाकोलथुणा ते सीया वासो. ॥ ६ ॥ ससपाणस बीओ जीवउवसंता भवे तहयठाणाइ; वेय माणे सब आऊट्टिआए अ ॥ ७ ॥ आऊट्टि मूलकंदे; पुप्फेय फले अ बीयहरिये य; भुंजंते सबलेऊ, तहेव संवच्छरस्संतो ॥ ८ ॥ दस दगदग लेवे कुव्वमाइहाणाइ दसयवरिसतेच ऊदियसीऊदगवग्धारीयहत्थमत्तेणं. ॥ ९ ॥ दव्वाइ भाययणेणं, वंदिज्जत्तभत्तपाणधित्तूर्णं भुंजइ सबलो एसो, इगवीसमो होइ नायव्वो "" ॥ १० ॥ ए २१ तथा शिक्षाशीलनां पन्नर स्थानक - • अह पन्न रसठाणेहिं - सुविणीएत्ती, बुच्चइ नियावत्ती अचवले अमाइ अकुतुहले. ॥१॥ अप्पं चाहिक्खिवई पबंधं च न कुव्वई, मित्तिजमाणो * अह पनरसठाणेहिं, सिक्खासिलुत्ति वुश्चइ । मायावती अचवले, अमाई अकुतूहले ॥ इति पाठांतरम्. For Private and Personal Use Only

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