Book Title: Gunvarma Charitra
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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्रांकः पंक्तिः 70 12 चरित्र अशुद्धम् शुद्धम् | पत्रांकः पंक्तिः मंतिता मंत्रिता स्वबुद्धया स्वबुद्धया तच्छुत्वा तच्छु त्वा गृहीतोऽस्त्या गृहीतश्चास्त्यमा 8. 8 पस्मेश्वरी परमेश्वरी येथारुचि यथारुचि प्रेक्षिता कृता स 20 गेहे अशुद्धम् शुद्धम् / क रतां कपूरतां सुस्वान्यसा मुखान्यसो भुक्तवा मुत्क्वा पृथक पृथक वरमाला वरमाला स० तच्छुत्वा तन्छ त्या तच्छुत्वा तस्छु त्वा कार्थकारं कथंकारं वृद्विरुप्यते वृध्धिरुप्यते भवद्गयां भवद्भयां देवो देव ! गवाक्षयित् गवाक्षात् श्रृत्वोपदेशं श्रुत्वोपदेशं सुमनाहरम मुमनोहरम् वृणिष्वेति वृणीष्वेति सञ्जायन सज्जयन् 882 92002 दृत्वा मस्म दत्त्वा भस्म . बधुरसि बंधुरसि समाप्तः कपरो // 3 // समाप्तः कपूरो For Private and Personal Use Only

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