Book Title: Gunsthan Vishleshan
Author(s): Himmatsinh Sarupriya
Publisher: Z_Ambalalji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012038.pdf

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Page 7
________________ 000000000000 000000000000 ***DOCDED gge Ja Eduction International २५० | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज - अभिनन्दन ग्रन्थ ३५ (६) प्रमत्तसंयत गुणस्थान जो जीव पापजनक व्यापारों से विधिपूर्वक सर्वथा निवृत्त हो, संत मुनि हो जाता है। संयत भी जब तक प्रमाद (मद्य, विषय, कषाय, निद्रा, विकथा) का सेवन करते हैं, प्रमत्तसंयत कहलाते हैं । प्रत्याख्यानावरणीय का तो इनके क्षयोपशम हो चुका है परन्तु उस संयम के साथ संज्वलन व नोकषाय का उदय रहने से मल को उत्पन्न करने वाला जो प्रमाद है (इसके अनेक भेद हैं ६ ) । अतएव प्रमत्त संयत गुणस्थान कहा । औदयिक भाव की अपेक्षा चारित्र क्षायोपशमिक भाव है परन्तु सम्यक्त्व की अपेक्षा औपशमिक, क्षायिक व क्षायोपशमिक कोई भी सम्यक्त्व सम्भव है । संयम से शान्ति तो है परन्तु प्रमाद से कभी शान्ति में बाधा होती है । (७) अप्रमत्तसंयत गुणस्थान ३७ – जब संज्वलन और नोकषाय का मन्द उदय होता है तब संयत मुनि के प्रमाद का अभाव हो जाता है, किसी प्रमाद का सेवन नहीं करता, इसका स्वरूप विशेष अप्रमत्तसंयत गुणस्थान कहा । वह मूलगुण व उत्तरगुणों में अप्रमत्त महात्मा निरन्तर अपने स्वरूप की अभिव्यक्ति के चिन्तन-मनन में रत रहता है। ऐसा मुनि जब तक उपशमक व क्षपक श्रेणी का आरोहण नहीं करता तब उसको अप्रमत्त व निरतिशय अप्रमत्त कहते हैं । इस स्थिति में एक ओर तो मन अप्रमादजन्य उत्कृष्ट सुख का अनुभव करते रहने के लिए उत्तेजित करता है तो दूसरी ओर प्रमादजन्य वासनाएँ उसको अपनी ओर खींचती हैं। इस तुमुल युद्ध में विकासगामी आत्मा कभी छठे, कभी सातवें गुणस्थान में अनेक बार आता-जाता है। शुद्ध अध्यवसायों से आगे बढ़ता है । 38 (८) नियट्टि बादर (अपूर्वकरण) गुणस्थान - नियट्टि का अर्थ भिन्नता, बादर – बादर कषाय, इस गुणस्थान में भिन्न समयवर्ती जीवों के परिणाम विशुद्धि की अपेक्षा सदृश नहीं होते अतः नियट्टि नाम रखा तथा उन जीवों के परिणाम ऐसे विशुद्ध होते हैं जो पहले कभी नहीं हुए थे अतः अपूर्वकरण ४० भी कहा। इस गुणस्थान में त्रिकालवर्ती जीवों के अध्यवसाय स्थान असंख्यात लोकाकाशों के प्रदेश समान होते हैं व समसमयवर्ती जीवों के अध्यवसाय स्थान असंख्यात लोकाकाशों के प्रदेश समान होते हैं। इस गुणस्थान का काल अन्तर्मुहूर्त है- असंख्यात के असंख्यात भेद हैं । पूर्ववर्ती जीवों के अध्यवसाय स्थान से अन्तिमवर्ती जीवों के अध्यवसाय अनन्त गुण अधिक शुद्ध व समसमयवर्ती के भी एक दूसरे की अपेक्षा षट् स्थानगत (अनन्त भाग अधिक, असंख्य भाग अधिक, संख्यात भाग अधिक, संख्यात गुण अधिक, असंख्यात गुण अधिक व अनन्त गुण अधिक) विशुद्धि लिए हुए होते हैं। इसी प्रकार प्रथम समय से अन्तिम समय के अधिक विशुद्ध जानो । इस आठवें गुणस्थान के समय जीव पाँच विधान प्रक्रियायें करते हैं— स्थितिघात, रसधात, गुणश्रेणी, गुणसंक्रमण, अपूर्वस्थितिबन्ध | स्थितिघात - जैसा कि ऊपर कह आये हैं- जो कर्म दलिक आगे उदय में आने वाले हैं, उनको अपवर्तनाकरण द्वारा अपने उदय के नियत समय से हटा देना अर्थात् बड़ी स्थिति को घटा देना । हुए ज्ञानावरणादि कर्मों के प्रचुर रस को अपवर्तनाकरण से मंद रस वाले कर देना । - गुणश्रेणी ४१ - उदय क्षण से लेकर प्रति समय असंख्यात गुणे, असंख्यात गुणे कर्म दलिकों की रचना करना अर्थात् जिन कर्मदलिकों का स्थितिघात किया जाता है—उनको उदय समय से लेकर अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त जितने समय होते हैं - उनमें उदयावलिका के समय को छोड़ शेष समय रहें उनमें प्रथम समय में जो दलिक स्थापित किये जावें उनसे असंख्यात गुणे अधिक दूसरे समय में, उनसे असंख्यात गुणे अधिक तीसरे समय में इस प्रकार अन्तर्मुहूर्त के चरम समय तक स्थापित कर निर्जरित करना गुणश्रेणी कहलाता है । रसघात - बंधे - गुणसंक्रमण - पहले बांधी हुई अशुभ प्रकृतियों का बध्यमान शुभ प्रकृतियों में परिणत करना । अपूर्वस्थितिबंध पहले की अपेक्षा अल्प स्थिति के रूमों को बांधना। यद्यपि इन स्थितिपातादि का वर्णन समकित पूर्व भी कहा परन्तु वहाँ अध्यवसाय की जितनी शुद्धि है उससे अधिक इन गुणस्थानों में होती हैं । वहाँ अल्प स्थिति अल्प रस का घात होता है—यहाँ अधिक स्थिति, अधिक रस का । वहाँ दलिक अल्प होते हैं व काल अधिक लगता है। यहाँ काल अल्प दलिक अधिक, वहाँ अपूर्वकरण में देशविरति सर्वविरति प्राप्त्यर्थं गुणोंग की रचना नहीं होती यह आठवें गुणस्थान में वर्तमान जीव चारित्र मोहनीय के उपशमन व क्षपण के अपेक्षा कहलाता है । चारित्र मोहनीय का उपशमन क्षपण तो नवमें गुण , रचना सर्वविरति की प्राप्ति बाद होती है। योग्य होने से उपशमक व क्षपक योग्यता की स्थान में ही होता है । (१) अनिवृति बादर संपराय गुणस्थान अन्तर्मुहूर्त काल मात्र अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में विकालत ४२ -- ए हर ए For Private & Personal Use Only

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