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वीर प्रभु का शासन पाकर मुक्ति सुख को पायेगा। दुःखी दुनिया मुक्त बनेगी, शासन की बलिहारी है।
.... हे जिनशासन. ३ ना समझो तुम कायर हमको, शेरों के भी शेर है। न्यौछावर कर देते तन मन, वीरों के भी वीर है। देव गुरु अपमान कभी ना, सहते हम बलवीर है। प्राण फना हो जाये, मरने को भडवीर है। जिनशासन का झंडा ऊंचा, लहराओ तैयारी है।
..... हे जिन शासन. ४ विश्व शांति फैलाने वाला, जैन धर्म हमारा है शांति मार्ग दिखलाने वाला, जैन धर्म ही प्यारा है विश्व धर्म कहलाये सो ही, जैन धर्म सितारा है। प्राणी मात्र का चंदा सूरज, जैन धर्म हमारा है गर्व से कहो दोस्तो मिल हम, जिनशासन पूजारी है
..... हे जिन शासन. ५ सुदी ग्यारस वैशाख माह की ध्वज वंदन सब करलो तुम। मैत्री भाव को दिल में बसाकर, शत्रु भाव मिटाओ तुम। प्राणी मात्र को गले लगाकर, मुक्ति मार्ग बताओ तुम। सूरि गुणरत्न की रश्मि पालो, जनम-जनम सुख पाओ तुमा हे जिनशासन! तुझ को वंदन, तेरा ध्वज जयकारी है।
.... हे जिन शासन. ६ रचयिता : आचार्य श्री रश्मिरत्नसूरीश्वरजी म.सा.
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