Book Title: Godwad ke Jain Shilalekh Author(s): Ramvallabh Somani Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 4
________________ 46 कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड यहां के ऋषभदेव के मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है कि इसे यशोभद्रसूरि मन्त्रशक्ति से वल्लभी लाये थे। लावण्यसमय ने अपनी तीर्थमाला में 'वल्लभी पुरी थी आणियो ऋषभदेव प्रसाद' वर्णित किया है। ये सब प्रसंग भक्तों की श्रद्धा को प्रदर्शित करते हैं। सांडेराव सांडेराव में चौहान कालीन 2 जैन लेख सं 1221 एवं 1236 के मिले हैं। ये दोनों लेख महावीर मन्दिर में हैं वि० सं० 1221 का लेख महत्त्वपूर्ण है। इसमें महावीर के जन्म के कल्याणक पर्व के निमित्त महाराणी आनलदेवी राष्ट्रकूट पातु केल्हण आदि द्वारा दान देने की व्यवस्था है / स्मरण रहे कि आज भी भगवान महावीर का- जन्मदिवस 'महावीर जयंति' रूप में मानते हैं। वि० सं० 1236 के लेख में केल्हण की राणी उसके दो भाई राल्हा और पाल्हा द्वारा पार्श्वनाथ मन्दिर के लिये दान देने का उल्लेख है। ऐसा प्रतीत होता है कि वि० सं० 1221 का लेख जो सभा मण्डप में लगा रहा है या तो किसी अन्य मन्दिर का होगा या वि० सं० 1221 के बाद मूलनायक प्रतिमा अन्य विराजमान कराई गई हो। इस सम्बन्ध में मूलनायक प्रतिमा के बदलने की बात ठीक लगती है। सुल्तान मोहम्मद गोरी के नाडोल पर आक्रमण ! वि० सं० 1234 में करने की पुष्टि पृथ्वीराज विजय आदि ग्रन्थों से होती है। अतएव ऐसा प्रतीत होता है कि मन्दिर की मूलनायक प्रतिमा भंग करने पर अन्य मूर्ति बिराजमान कराई गई हो। घाणेराव-घाणेराव मुछाला महावीर मन्दिर के लिये अत्यन्त प्रसिद्ध है। यहाँ के कई प्राचीन शिलालेख मिले हैं किन्तु वे अभी सम्पादित नहीं हुए हैं। एक लेख हाल ही में 'वरदा' में श्री रत्नचंद्र अग्रवाल ने सम्पादित किया है इसमें मन्दिर में 'नेचा' की व्यवस्था का उल्लेख है / मुछाला महावीर के सम्बन्ध में कई किंवदंतियाँ प्रसिद्ध हैं। राणकपुर-राणकपुर का अन्य जैन मन्दिर बहुत उल्लेखनीय है। इस मन्दिर का निर्माण श्रेष्ठी धरणाशाह द्वारा कराया गया था वि० सं० 1466 का प्रसिद्ध शिलालेख इस मन्दिर में लगा हुआ है। सोम सौभाग्य काव्य में इस मन्दिर की प्रतिष्ठा का विस्तार से उल्लेख है। महाकवि हेम ने राणकपुर स्तवन नामक पद्य में, जो वि० सं० 1466 में विरचित किया था, इस मन्दिर का विस्तार से उल्लेख है। मेवाड़ के इतिहास के अध्ययन के लिए राणकपुर के वि० सं० 1466 के शिलालेख का बहुत उल्लेख करते हैं। इसमें दी गई वंशावली अपेक्षाकृत अधिक विश्वसनीय है। महाराणा कुंभा के सम्बन्ध में दी गई सूचनायें एवं विरुदावली विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इसमें कुंभा द्वारा सारंगपुर, नागोर, गागरोन, नरायणा, अजमेर, मंडोर, माण्डलगढ़, बूंदी, खाटू (श्यामजी), चाटसू, जाता दुर्ग जीतने का उल्लेख है। महाराणा कुंभा की आज्ञा से धरणाशाह ने मन्दिर बनाया था। इसके परिवार द्वारा सालेरा, पिंडवाडा और अजारी के जैन मन्दिरों के जीर्णोद्धार कराने का भी उल्लेख मिलता है। इस मन्दिर में लगे लेखों के अनुसार निर्माण कार्य वि० सं० 1515 तक चलता रहा / मेघनाद मंडप अहमदाबाद उस्मानपुर निवासी एक जैन परिवार ने बनाया था जिसने 1621 ई० में इसका जीर्णोद्धार भी कराया था। बरकाणा बरकाणा के मन्दिरों में 2 अप्रकाशित शिलालेख हैं / एक लेख महाराणा जगतसिंह एवं दूसरा लेख महाराणा जगतसिंह II के राज्य के हैं। दोनों लेख प्रकाशित हैं / मैं इन्हें शीघ्र ही सम्पादित कर रहा हूँ। इन लेखों में यहां होने वाले मेले के अवसर पर छूट देने का उल्लेख है। इनके अतिरिक्त नाणा बेड़ा, जाकोडा, कोरंटा, लालराई, खींवाणदी, सेंसली, बाली, खोमेल, खुडाला आदि से भी प्राचीन जैन लेख मिले हैं। 1. इस सम्बन्ध में एक शैव योगी और यशोभद्रसूरि के मध्य वाद-विवाद होने और दोनों द्वारा मन्दिर लाने की कथा प्रचलित है। 2. मुनि जिनविजय द्वारा सम्पादित : प्राचीन जैन लेख संग्रह। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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