Book Title: Germany me Jain Dharm ke Kuch Adhyeta
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Z_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf

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Page 5
________________ जैन ग्रन्थोंका चुने हुए जैन विद्वानों द्वारा आधनिक पद्धतिसे स पादन किये जानेकी आवश्यकता है। प्रकाशित ग्रन्थोंकी आलोचनात्मक निर्भीक समीक्षाकी आवश्यकता है। इस सम्बन्धमें जैनोंके सभी सम्प्रदायोंके विद्वानों द्वारा तैयार की गयी सम्मिलित योजना कार्यकारी हो सकती है / शोध कार्यको सफलतापूर्वक सम्पन्न करनेके लिए पुस्तकालय अथवा पुस्तकालयोंकी आवश्यकता है जहाँ शोध सम्बन्धी हर प्रकारकी सुविधाएँ उपलब्ध हो सकें। ये भारतके कूछ केन्द्रीय स्थानोंमें स्थापित किये जाने चाहिये तथा विद्यमान सुविधाओंका आधुनिकीकरण किया जाय / अन्तमें, एक महत्त्वपूर्ण बात और कहना चाहता हूँ। वह यह है कि यथार्थतासे सम्बन्ध स्थापित करनेका प्रयत्न किया जाये / विषयोंका चुनाव इस प्रकार किया जाय जिससे शोध छात्र प्रोत्साहित हों और आगे चलकर दिशा भी ग्रहण कर सकें एवं जैन विद्याको प्रकाशित कर सकें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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