Book Title: Ek Rajasthani lok Katha ka Vishleshnatmaka Adhyayan
Author(s): Manohar Sharma
Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf

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Page 7
________________ 8 डॉ० मनोहर शर्मा परन्तु उसका मूल उद्देश्य कुछ दूसरा ही है, अतः उसमें 'सत्यक्रिया' का प्रयोग दो बार हुआ है / वहाँ एक बार आयु का अर्द्ध भाग दिया गया है तो दूसरी बार परिस्थितिवश वापिस भी लिया गया है। लोककथा में नारी-जाति के प्रति घोर घृणा का वातावरण है / पौराणिक उपाख्यान में ऐसा नहीं है / वहाँ नारी-सम्मान का प्रकाशन हुआ है / लोककथा में वह पूर्ण रूप से कृतघ्न एवं अविश्वसनीय है / यही कारण है कि कथा के अंत में उसकी दुर्गति करवा कर 'काव्यगत न्याय' (Poetic Justice) का पालन किया गया है। उसका बुरा हाल होता है परन्तु फिर भी वह श्रोताओं अथवा पाठकों की सहानुभूति नहीं प्राप्त कर सकती। इस रूप में यह एक नीति-कथा बन गई है। .. इस प्रकार हम देखते हैं कि एक लोककथा में कितने विभिन्न तत्व छिपे हुए रहते हैं / साथ ही आज की लोककथा अति प्राचीन काल में भी मिल सकती है। समयानुसार उस में विभिन्न प्रभाव प्रवेश पाकर उसे नया रूप प्रदान करते हैं। राजस्थानी लोककथा में ऐसा ही हुआ है। उसमें अनेक तत्वों का समन्वय है और यही भारतीय संस्कृति का प्रधान उपलक्षण है, जो यहाँ की ल ककथाओं तक में दृष्टव्य है। इसी प्रकार अन्य लोककथानों के विश्लेषणात्मक विवेचन की भी आवश्यकता है। इससे साहित्य-जगत् को बड़ा लाभ मिलेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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