Book Title: Dwandwa aur Unka Nivaran
Author(s): Ramnarayan, Ranjankumar
Publisher: Z_Yatindrasuri_Diksha_Shatabdi_Smarak_Granth_012036.pdf
View full book text
________________
-यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थहै जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति किसी तीव्र प्रेरक या इच्छा को छिपाने के प्रयास में उसके विपरीत व्यवहार करता है ( हिल गार्ड आदि १९७५) ।
मनोविश्लेषणवादी विचारधारा के अनुसार, एक व्यक्ति के व्यवहार में कभी-कभी ऐसा देखने में आता है कि वह वस्तुतः कोई एक विशेष व्यवहार करना चाहता है, परंतु वह वैसा न करके ठीक उसके विपरीत ही व्यवहार करते देखा जाता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति किसी एक व्यक्ति अथवा विषय के प्रति घृणा के स्थान पर प्रेम करने लगता है और प्रेम के स्थान पर घृणा करने लगता है। वस्तुतः यहाँ व्यक्ति की ऐसी विपरीत प्रतिक्रिया से ही उसका अहम् व समायोजन सुरक्षित रहता है। जैसे जब एक कर्मचारी पर उसके बॉस (Boss) की नित अकारण ही डाँट फटकार पड़ती रहती है, तब ऐसी स्थिति में संबंधित अधीनस्थ कर्मचारी की स्वाभाविक प्रतिक्रिया अपने बॉस को उल्टी कड़ी डाँट-फटकार लगाने की भी होती है, परंतु ऐसे व्यवहार के परिणाम को देखकर प्रायः वह ऐसा न करके ठीक इसके विपरीत बॉस के प्रति विनम्रता का ही व्यवहार करते देखा जाता है और निरंतर स्थिति को सँभालते हुए अपने वास्तविक आवेगों व संवेगों को नियंत्रित व दमित कर लेता है । इस प्रकार प्रतिक्रिया संरचना एक ऐसी रक्षायुक्ति होती है, जिसके अंतर्गत व्यक्ति अपने कष्टकर, संकट-सूचक व क्षति-जनक आवेगों व भावनाओं को अचेतन में धकेल देता है और उनके स्थान पर उनके विपरीत भाव व व्यवहार को प्रदर्शित करने लगता है। इस प्रकार यहाँ यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रतिक्रिया संरचना की रक्षायुक्ति का व्यक्तित्व के समायोजन में एक विशेष सीमा तक महत्त्वपूर्ण योगदान है।
४. युक्तीकरण ( Rationalization) - जब व्यक्ति अपनी असफलताओं पर पर्दा डालने के प्रयास में वास्तविक कारण के स्थान पर अवास्तविक कारणों के आधार किसी बात का औचित्य सिद्ध करता है तो उस प्रक्रम को युक्तीकरण कहते हैं कोलमैन, (१९७४) ने भी लिखा है कि इस विरचना में व्यक्ति अपने द्वारा किए जाने वाले कार्यों को (तर्कों) के आधार पर उचित ठहराने का प्रयास करता है।
युक्तीकरण की रक्षा युक्ति से व्यक्ति न केवल अपने अतीत के अल्प व विफल प्रयासों के संबंध में ही बनावटी व
Jain Education International
आधुनिक सन्दर्भ में जैनधर्म
दिखावटी तर्क प्रस्तुत करता है, बल्कि अपने वर्तमान निष्फल प्रयासों को भी न्यायोचित ठहराने का प्रयास करता है । उदाहरणार्थं जब एक विद्यार्थी परीक्षा में फेल हो जाता है, तब प्रायः यही कहते सुना जाता है कि पेपर बहुत कठिन थे, उत्तर पुस्तिका के जाँचने में जरूर कुछ गड़बड़ी हुई है, परीक्षाकाल में उसकी तबीयत खराब थी और इन्हीं कारणों से वह परीक्षा में सफल नहीं हो सका, परंतु वह यह कभी स्वीकार नहीं करता कि मैंने परीक्षा में सफल होने के लिए आवश्यक परिश्रम नहीं किया । क्योंकि ऐसा कहने व मानने से उसके अहम् को गहरी चोट लगती है व उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा भी कम होती है तथा इस आत्मस्वीकृति से उसकी अयोग्यता प्रत्यक्षतः सिद्ध होती है। स्पष्टतः व्यक्ति इस कठोर व कटु स्थिति को कभी भी स्वीकार नहीं कर सकता। इस कारण वह अपने अहम् की रक्षा व सामाजिक प्रतिष्ठा को बचाने के लिए अपने निष्फल प्रयासों पर पर्दा डालने का प्रयास करता है व लज्जा की वेदना से बचना चाहता है।
युक्तीकरण के मुख्यतः दो रूप होते हैं-
(i) प्रथम, जिसके अंतर्गत व्यक्ति अपनी पसंद व नापसंद के अधिकार पर अपने व्यवहार का युक्तीकरण करता है, जैसे जब एक विश्वविद्यालय के प्रॉफेसर से यह पूछा जाता है कि वे अपनी योग्यता के आधार पर एक I.A.S. आफिसर क्यों नहीं बने। इस प्रश्न के उत्तर में प्रोफेसर महोदय यह कहते हैं कि उन्हें आफिसर बनना पसंद ही नहीं था, तब उनका ऐसा युक्तीकरण अपनी पसंद व नापसंद के आधार पर कहा जाता है।
(ii) द्वितीय प्रकार के युक्तीकरण के अंतर्गत व्यक्ति अपनी विफलता के लिए बाह्य परिस्थितियों की कठोरता व क्रूरता को दोषी ठहराता है।
इन दो मुख्य रूपों के अतिरिक्त, व्यक्ति की प्रतिक्रिया के आधार पर भी युक्तीकरण के दो और अन्य रूप होते हैं-(i) अंगूर खट्टे हैं - इसके अनुसार जब एक व्यक्ति को मनपसंद लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती, तब वह उसमें अनेक दोष निकालकर अपने अहम् की रक्षा करता है। इस संबंध में लोमड़ी व मीठे अंगलों की कहानी अति लोकप्रिय है। जंगल में एक ऊँचे स्थान पर एक लोमड़ी सुन्दर, पके व मीठे अंगूरों के गुच्छे लटकते देखती है, लोमड़ी का मन अंगूरों को पाने के लिए अति लालयित
मটটि{ 24 मिनि
For Private Personal Use Only
www.jainelibrary.org