Book Title: Dwadashangi Padpraman Kulakam
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ सप्टेम्बर २०१० जिनराजसूरिजी ने रामणकुमार को दीक्षा देकर कीर्तिसागर नाम रखा । सूरि जी ने समस्त शास्त्रों का अध्ययन करने के लिए उन्हें वा० शीलचन्द्र गुरु को सौंपा । उनके पास इन्होंने विद्याध्ययन किया । । चन्द्रगच्छ-श्रृंगार आचार्य सागरचन्द्रसूरि ने गच्छाधिपति श्री जिनराजसूरि जी के पट्ट पर कीर्तिसागरजी को बैठाना तय किया । सं० १४७५ में शुभमुहूर्त के समय सागरचन्द्र ने कीर्तिसागर मुनि को सूरिपद पर प्रतिष्ठित किया । नाल्हिग शाह ने बड़े समारोह से पट्टाभिषेक उत्सव मनाया । उपा० क्षमाकल्याणजी की पट्टावली में आपका जन्म सं० १४४९ चैत्र शुक्ला' षष्ठी को आर्द्रानक्षत्र में लिखते हुए भणशाली गोत्र आदि सात भकार अक्षरों को मिलाकर सं० १४७५ माघ सुदि पूर्णिमा बुधवार को भणशाली नाल्हाशाह कारित नन्दि महोत्सवपूर्वक स्थापित किया । इसमें सवा लाख रुपये व्यय हुए थे । वे सात भकार ये हैं- १. भाणसोल नगर, २. भाणसालिक गोत्र, ३. भादो नाम, ४. भरणी नक्षत्र, ५. भद्राकरण, ६. भट्टारक पद और जिनभद्रसूरि नाम । आपने जैसलमेर, देवगिरि, नागोर, पाटण, माण्डवगढ़, आशापल्ली, कर्णावती, खम्भात आदि स्थानों पर हजारों प्राचीन और नवीन ग्रन्थ लिखवा कर भण्डारों में सुरक्षित किये, जिनके लिए केवल जैन समाज ही नहीं, किन्तु सम्पूर्ण साहित्य संसार आपका चिर कृतज्ञ है । आपने आबू, गिरनार और जैसलमेर के मन्दिरों में विशाल संख्या में जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा की थी, उनमें से सैंकड़ों अब भी विद्यमान हैं । सं० १५१४ मार्गशीर्ष वदि ९ के दिन कुम्भलमेर में आपका स्वर्गवास हुआ । जैसलमेर के सम्भवनाथ जिनालय की प्रशस्ति में आपको सद्गुणों की बड़ी प्रशंसा की गई है। इस प्रशस्ति की १०वीं पंक्ति में लिखा है कि आबू पर्वत पर श्री वर्द्धमानसूरि जी के वचनों से विमल मन्त्री ने जिनालय का निर्माण करवाया था। श्री जिनभद्रसूरिजी ने उज्जयन्त, चित्तौड़, माण्डवगढ़, जाउर में उपदेश देकर जिनालय निर्माण कराये व उपर्युक्त नाना स्थानों में ज्ञान भण्डार स्थापित कराये, यह कार्य सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण था । इस मन्दिर

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