Book Title: Dvadasharnaychakram Part 4
Author(s): Mallavadi Kshamashraman, Labdhisuri
Publisher: Chandulal Jamnadas Shah

Previous | Next

Page 329
________________ (टी.) नामकारादिक्रमः [वै. सू. १-२-६] [वै. सू. १-२-७-८] . [संग्रहान्तर. ] (टी.) (टी.) (टी.) (टी.) (टी.) (टी.) (मू०) (टी.) (मू.) (मू.) (टी.) [वै. सू. १-१-९] [वै. सू.१-१-१०-११] [वै. सू. १-२.७.८] [वै. सू. १-१-१५-१६-१७] [वै. सू. १-१-१३-१४] [वै. सू. ८-२-३] [व्या. महा. १-१-५६] [व्या. महा. १-१-१] [सिद्धसेन ] [संम. का.१-ना. २८] [सांख्यका०९] [वाक्यप. १-३-४] (टी.) (टी.) [पा. धा. १४५९] अन्यत्रान्त्येभ्यो विशेषेभ्यः - सदिति यतो द्रव्यगुणकर्मसु द्रव्यमेव हि तथा तथावस्थानात् मूर्तिः कथं न वायोः० अनुवृत्तिप्रत्ययकारणं सामान्यम् सदनित्यं द्रव्यवत् कार्यम् द्रव्याणि द्रव्यान्तरमारभन्ते. सदिति यतो द्रव्यगुणकर्मसु. क्रियावद्गुणवत्० कार्यविरोधिकम् अर्थ इति द्रव्यगुण. अन्तरंगबहिरङ्गयो. इतरेतरश्रयाणि. अस्ति भवति विद्यति. णिययवयणिजसच्चा० असदकरणादुपादान. यत्नेनानुमितोऽप्यर्थः ष्ठिवसीव्योर्म्युट्परयोः. अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु धर्मज्ञानवैराग्यैश्वर्याणि. प्रमाणानि प्रवर्त्तन्ते. स्थावरस्य जङ्गमतां गतस्य. द्रव्यं च भव्ये दृष्टान्तबलाव्यवसायसिद्धिः० लौकिकपरीक्षकाणां यस्मिन्नथे. ननूक्तं शास्त्रकाराः अचाक्षुषप्रत्यक्षगुणस्य सतः. स्वार्थमभिधाय शब्दः आशंका [सद] वचनेलिङ्गसुपि स्थः जानानाः सर्वशास्त्राणि. श्रोत्रादिवृत्तिः प्रत्यक्षम् आत्मेन्द्रियमनोऽर्थसनिकर्षात् कल्पनापोढं प्रत्यक्षम् रूपालोकमनस्कार चतुर्भिश्चित्तचैत्ताः चक्षुर्विज्ञानसमङ्गी अर्थेऽर्थसंज्ञी न त्वर्थे धर्मसंज्ञी नीलः स नाम नीलं० [सिद्ध-द्वा० २०.४] [पा० ५-३-१०४] [गोतम सू. १-१-२५] (टी.) (टी.) (टी.) (टी.) (टी.) (टी.) (मू०) (टी.) (टी.) (टी.) (टी.) (टी.) (टी.) (टी.) (टी.) (टी.) (टी.) (टी.) (टी.) (टी.) (टी.) (मू.) (मू०) (टी.) [वै. सू. २-२-२५-२६] [व्या. महाभा. ५-३-४७] [पा. ३.३-१३४] [पा. ३-२.४] [ सांख्य.] [वै. सू. ३-१-१८] [दिङ्नाग] [ दिनाग] [अभि. ध. को. २०६४] [अभिधर्मागम] [अभिधर्मपिटक] [प्रकरणपद] Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364