Book Title: Dravyasamgraha
Author(s): Nemichandra Acharya, Vijay K Jain
Publisher: Vikalp

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Page 174
________________ Verse 45 असुहादो विणिवित्ती सुहे पवित्ती य जाण चारित्तं । वदसमिदिगुत्तिरूवं ववहारणया दु जिणभणियं ॥ (45) गाथा भावार्थ - जो अशुभ (पाप) कार्य से दूर होना और शुभ (पुण्य) कार्य में प्रवृत्त होना अर्थात् लगना है उसको चारित्र जानना चाहिए। श्रीजिनेन्द्र देव ने व्यवहारनय से उस चारित्र को पाँच व्रत, पाँच समिति और तीन गुप्ति स्वरूप तेरह प्रकार का कहा है। ___Conduct (cāritra), from the empirical point of view, consists in desisting oneself from demerit (pāpa) - noncommendable activities - and engaging in merit (punya) - commendable activities. Lord Jina has proclaimed that this empirical conduct is observed through five vows (vratas), five regulations (samitis), and three controls (guptis). EXPLANATORY NOTES Ācārya Kundkund's Samayasāra एवमलिये अदत्ते अबंभचेरे परिग्गहे चेव । कीरदि अज्झवसाणं जं तेण दु बज्झदे पावं ॥ (8-27-263) तह वि य सच्चे दत्ते बम्हे अपरिग्गहत्तणे चेव । कीरदि अज्झवसाणं जं तेण दु बज्झदे पुण्णं ॥ (8-28-264) In the same way (like the disposition pertaining to injury or violence), dispositions of involvement in falsehood, stealing, unchastity, and possessions, cause bondage resulting into demerit. 157

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