Book Title: Dodhak Bavni
Author(s): Diptipragnashreeji
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 5
________________ फेब्रुआरी- 2006 • बूंब परे सब दो रहे ले ले आयुध हाथ वदन मिलीन करे जसा जावे कोइ अनाथ ||४०|| भगत भली भगवंतकी संगत भली सुं साध ओरनकी संगत्ति जशा आठें पोहोर उपाध ॥४१॥ मुरख मरन न देखीयत करत बहुत आरंभ सात विसन सेवे जशा करे धर्म बिच दंभ ॥ ४२ ॥ याग करे प्रानी हणे भाखे धर्म उलंठ देखो ग्यांन विचारके क्युं पावे वैकुंठ ||४३|| रीश त्याग वैराग धर हो योगी अवधुत शीवनगरी पाये जशा करे ऐंशी करतूत ॥४४॥ लेंहणा देहणा कछु नही मुहकी मिठी वांत हृदये कपट धरे जशा त्ताके शिर पर लात ॥ ४५ ॥ वरशें वारधी अहोनीशे पाख रतीनुं पांन भाग्य विना पावे नही याचक दाता दान ॥ ४६ ॥ शंख शरिखा उजला नर फूटरा फरक जशा न सोभे दांन विण ज्यु बुटी कांन धरक ॥४७॥ खरो पवहे सुरको रण विच मुंड विहंड पाछा पाउ धरे नही जो होवे सत- खंड ॥४८॥ सायर मोती नीपजे हीरा हीरा खांण जिहां ग्यांन ध्यान त्या नीपजे जिहा सुगुरु की वांण ॥ ४९ ॥ हस्त ही मंडण दांनं हे घरमंडण वरनार कुलमंडण अंगज जसा मानवमंडण सार ॥५०॥ लंछन निसपति शांतरुची सुरज लंछन ताप दाता लंछन धण विना सवहुं दया सराप ॥५१॥ क्षांत दांस (दांत) न ता ( समता ) रता हंणे नही षटकाय जसा पांन किरियामगन सो साधु कहिवाय ॥ १५२ ॥ सतरसें तीसे समें नवमी सुकल अषाढ दोधक बावनी जसा मूर नक्षत करी गाढ ॥ ५३॥ | Jain Education International For Private & Personal Use Only 57 www.jainelibrary.org

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