Book Title: Dodhak Bavni Author(s): Diptipragnashreeji Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ कवि जशराजकृत दोधकबावनी सं. साध्वी दीप्तिप्रज्ञाश्री हिन्दी भाषामां गुंथायेली आ दोधकबावनी जशराज नामना कविए बनावेली छे. तेमणे अनेक दोहाओमा पोतानुं नाम 'जशा' के 'जशराज' ए रोते गुंथ्यं छे. कबीरना के तुलसीदासना दोहा जेवा बोधप्रद होय छे तेवा ज आ दोहा पण लागे छे. कवि जशराजे पोताने ज बोध आपवा खातर आ दोहा बनाव्या हशे एबुं लागे छे. सं. १७३० मां अषाढ शुदि नोमने दिने मूल नक्षत्रमा आ दोधक बावनी तेमणे बनावी छे तेवू तेमणे छेल्ला-५३मां दोहामां लख्युं छे. पण पोते क्यांना छे तथा साधु हता के गृहस्थ, तेवी कोई वात तेमणे लखी नथी, एटले तेमना विप्रे वधु वीगतो मळवा- मुश्केल छे. केटलाक दोहा बहु मार्मिक अने हृदयस्पर्शी शीख आपी जाय तेवा छे. जेमके दोहा क्र. ६ अमां कवि कहे छे के अन्याय वडे पेदा करेल धननुं दान घणुं आपवा छतां तेनुं फळ अल्प होय; अने न्यायनीतिथी उपार्जेखें धन थोडंक ज दानमां वापरीए तो पण तेनुं फल बहु मळे. न्यायसम्पन्नवैभवनी के न्यायनीतिना पंथे चालवा माटेनी केवी सरस शीख ! १९मा दोहामां खल(दुर्जन)नी संगत न करवानुं कर्तुं छे, तो २०मा दोहामां शरदऋतुनो मेघ अने कंजूस-गाजे घणा पण वरसे नहि, तेनी वात कही छे. लक्ष्मीनो पण कविए महिमा तो कर्यो छे ! जेमके- दोहा २७मां - नगदुहिता-पार्वती, पति-शंकर, आभरण-सर्प, तेनो अरि-गरुड, तेनो पतिविष्णु, तेनी नारी-लक्ष्मी; ते विना पुरुषनी शोभा तथा लाज (आबरु) न वधे. तो धन भेगुं कर्या पछी जो वापरे के दानमां आपे नहि, तो ए बापडो वागोळ थई ऊंधे माथे लटकीने हमेशां धन शोध्या करे छे - एवी वात पण ३६मा दोहामां कही दीधी छे. ४५मां दोहामां - लेवा देवा विना ज 'मुखे मीठा ने मनमां जठा' लोकोनी भारी खबर लई नाखी छे । दोधकबावनी आ रीते घणी प्रेरक तेमज रसप्रद रचना छे. आ बावनीनी ३ पानांनी प्रत कोडाय (कच्छ)ना मण्डलाचार्य श्रीकुशलचन्द्रगणिसंगृहीत कोडाय जैन महाजनना भण्डारनी पो. ५८ क्रम. २५८ नी प्रति छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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