Book Title: Dhyan ka Shastriya Adhyayan
Author(s): N L Jain
Publisher: Z_Jaganmohanlal_Pandit_Sadhuwad_Granth_012026.pdf

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Page 8
________________ [खण्ड ध्यान के भेदों के विषय में दिगे ने नमस्कार स्वाध्याय के आधार पर एक अपवाद बताया है। इसमें ध्यान के २४ भेद बताये गये हैं । ये ध्यान के सामान्य एवं परमभेद के रूप में शून्य, कला, ज्योति, विन्दु, नाद, तारा, लय, लव, मात्रा, पद, सिद्धि के रूप में चौबीस भेद हैं। वस्तुतः गाथा के अनुसार ये बाईस (११ x २) भेद ही होते हैं । इस गाथा से चौबीस भेद निरुपित करने के लिये उसका मूल खोजना होगा। ध्यान के इन भेदों को वह मान्यता प्राप्त नहीं है, जो चार भेद की परम्परा को है । इन चारों ध्यानों का विवरण सारणी ४ में दिया गया है। www.jainelibrary.org सारणी ४-जैन शास्त्रों में ध्यान के भेदों का विवरण नाम प्रकार लक्षण आलंबन अनुप्रेक्षा गति लेश्या स्थिति १. आतंध्यान १. इष्ट वियोग क्रंदन, चिन्ता, - तिर्यच अशुभ तीन ४-६ गुणस्थान २. अनिष्ट संयोग दीनता, अश्रुपात, ३. वेदना, रोगचिता क्लेश चर्चा ४. निदान, भोगात २. रौद्र ध्यान १. हिंसानंद आसन्न दोष, - तिर्यंच अशुभ ४-५ गुणस्थान २. मृपानंद बहुल दोष, ३. चौर्यानंद अज्ञान दोष, ४. संरक्षणानंद आमरणांत दोष ३. धर्म/धम्यं ध्यान १. आज्ञा विचय (१) आज्ञा रुचि (१) पिंड, पद, अनित्य, पीत, पद्म, ४-१२ गुणस्थान २. अपायविचय निसर्ग रुचि, रूप, रूपातीत अशरण, मनुष्य, देव शुक्ल ३. विपाकविचय उपदेश रुचि, ४. संस्थान विचय सूत्र रुचि, (२) आजव, लघुता, एकत्व, (२) वाचना, पृच्छना, मार्दव, उपदेश, संसार परिवर्तना, धर्मकथा, जिनागम रुचि अनुप्रेक्षा, सामयिक ४. शुक्ल ध्यान १. सविचार पृथक्त्ववितर्क विवेक, क्षान्ति, क्षमा, अपाय, मनुष्य, देव, तीन शुभ १०-१३ गुणस्थान २. अविचार पृथक्त्ववितकं व्युत्सर्ग मुक्ति, अशुभ, निर्वाण लेश्यायें १३-१४, केवली ३. सूक्ष्मक्रिया प्रतिपत्ति , अव्यथा, आर्जव, अनंतवृत्तिता ४. व्युपरतक्रिया निवृत्ति असंमोह मार्दव, विपरिणाम रूपातीत For Private & Personal Use Only १२. पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ Jain Education International

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