Book Title: Dharmratna Prakaran Part 01
Author(s): Shantisuri, Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 14
________________ वहां सम्बन्ध, यह उपायोपेय स्वरूप अथवा साध्य साधन रूप जानो, वहां यह शास्त्र (उसके अर्थका) उपाय अथवा साधन है, और शास्त्रार्थपरिज्ञान उपेय अथवा साध्य है। - प्रयोजन तो दो प्रकार का है:-कर्ता का और श्रोता का. वह प्रत्येक पुनः अनन्तर और परंपरा भेद से दो प्रकार का है। __ वहां शास्त्रकर्ता को अनन्तर प्रयोजन भव्यजीवों पर अनुग्रह करना यह है, और परंपर प्रयोजन मोक्ष प्राप्तिरूप है, जिसके लिये कहा है किः "सवज्ञोक्तोपदेशेन, यः सचानामनुग्रहम् । करोति दुःखतप्तानां, स प्राप्नोचिराच्छिवम् ॥१॥ सर्वज्ञोक्त उपदेश द्वारा जो पुरुष दुःख से संतप्त जीवों पर अनुग्रह कर वह थोड़े समय में मोक्ष पाता है। श्रोता को तो अनन्तर प्रयोजन शास्त्रार्थ परिज्ञान है, और परंपर प्रयोजन तो उनको भी मोक्ष प्राप्तिरूप है. कहा है कि: "सम्यक शास्त्रपरिज्ञाना-द्विरक्ता भवतो जनाः । लब्ध्वा दर्शनसंशुद्धिं, ते यान्ति परमां गतिम् (त) ? ॥१॥ शास्त्र के सम्यक् परिज्ञान से संसार से विरक्त हुए पुरुष सम्यक्त्व की शुद्धि उपलब्ध करके परमगति (मोक्षगति) पाते हैं। ___ नम कर याने प्रणाम करके, किसको ? याने वीर को, कर्म को विदारण करने से, तप से विराजमान होने से, और उत्तम वीर्य से युक्त होने से जगत् में जो वीर पदवी से प्रख्याति पाये हुए हैं, जिसके लिये कहने में आया है कि:

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