Book Title: Dharmik Tatha Naitik Shiksha Author(s): Hemlata Talsera Publisher: Z_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf View full book textPage 2
________________ नैतिकता परिणाम । यदि विश्व के धर्मों की तुलना नैतिक विकास करने वाली शिक्षा पर अधिक बल करें तो पता चलेगा कि उनमें तत्वज्ञान, ज्ञानशास्त्र दिया था। और कर्मकाण्ड में भिन्नता हो सकती है पर नीति ऐतिहासिक शास्त्र सभी में लगभग एक जैसा है । नैतिक आच५ रण के पीछे धर्म की स्वीकृति की आस्था उठ जाने भारतवर्ष में अति प्राचीनकाल से ही धार्मिक से समाज लड़खड़ा जायेगा--न कहीं सत्य होगा, तथा नैतिक शिक्षा को महत्त्व दिया जाता रहा है। न सदाचार, न ईमानदारी और न अहिंसा ही। वैदिककाल में ईश्वर-भक्ति तथा धार्मिकता की धार्मिक तथा नैतिक सम्प्रत्यय के आधार पर भावना भरना व पवित्र चरित्र-निर्माण शिक्षा के धार्मिक तथा नैतिक शिक्षा का अभिप्राय ऐसी मुख्य लक्ष्य माने जाते थे। जीवन का उद्देश्य धर्म, शिक्षा से है, जिसमें विद्यार्थियों को सद् तथा असद् अथ, काम व मोक्ष का अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति था, जिसमें धर्म को में अन्तर करके विवेकसम्मत निर्णय लेने और सबसे महत्त्वपूर्ण माना गया। प्राचीन विद्यालयों सदाचार का प्रशिक्षण दिया जा सकता है। राष्ट्रीय का वातावरण धार्मिक कार्यों जैसे यज्ञ, संध्या, शिक्षा नीति (१९८६) के अनुसार बच्चों का नैतिक प्रार्थना, संस्कार व धार्मिक उत्सवों से परिपूर्ण एवं चारित्रिक विकास नैतिक शिक्षा का मख्य लक्ष्य रहता था। उस समय के समाज का लक्ष्य उच्च पा है। शिक्षा द्वारा विद्यार्थियों को ज्ञान एवं कुशलता नैतिक जीवन व्यतीत करना था, यही शिक्षा का प्रदान करने के साथ-साथ उनमें ऐसे मानवीय ध्येय भी था। मध्यकाल में शिक्षा के लिए मन्दिर, गणों जैसे--प्रेम, सेवा, सहानुभूति, सत्य, सहयोग. मस्जिद तथा धार्मिक स्थानों का प्रयोग किया जाता संयम, सहिष्णता, कर्तव्यपरायणता, अहिंसा, देश- था। यूरोपीय ईसाई मिशनरी ने धर्म प्रचार हेतु भक्ति आदि का विकास करना है, जिससे वे एक विद्यालयों में धार्मिक तथा नैतिक शिक्षा की आदर्श सदाचारी नागरिक बन सकें । नैतिक शिक्षा व्यवस्था की । १८५४ के वुड घोषणा-पत्र में शिक्षा के अन्तर्गत शारीरिक शिक्षा, मानसिक स्वस्थ में धर्मनिरपेक्ष स्वरूप तथा नैतिक विचारधारा की चरित्र, आचरण, उचित व्यवहार, शिष्टाचार, पुष्टि की गई। १८८२ के भारतीय शिक्षा आयोग सामाजिक अधिकार, कर्तव्य तथा धर्म आदि सम्मि- (हन्टर कमीशन) ने पाठ्यक्रम में धार्मिक एवं लित होते हैं। यह वास्तव में उचित मनोभावों. नैतिक शिक्षा का कोई स्थान नहीं रखा । १९१७भावनाओं एवं संवेगों को विकसित करने की १८ के कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग ने शिक्षा पद्धति है। के धार्मिक एवं नैतिकरूप को झगड़े की वस्तु मानसमाज में शान्तिपूर्वक जीवन व्यतीत करने कर कोई विचार नहीं किया। १९३७-३८ की गाँधी के लिए नैतिक मूल्यों का विकास किया गया है। जी की बेसिक शिक्षा योजना में 'सत्य' को धार्मिक वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, बाईबिल, शिक्षा का अग बनाया गया। १९४४-४६ में बिशप जी. डी. बार्न समिति ने धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा कुरान आदि महान ग्रन्थों में धर्म और दर्शन की आवश्यकता तो अनुभव की किन्तु इसका S के साथ-साथ श्रेष्ठ नैतिक मूल्यों का संग्रह है। महावीर, गौतम बुद्ध, ईसामसीह, मुहम्मद, जर दायित्व घर तथा समुदाय तक ही रखा। थुस्त, बाल्मीकि, व्यास, तुलसीदास, कबीर, इकबाल, स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद बने पहले शिक्षा टैगोर, अशोक, हर्षवर्धन, अकबर, दयानन्द सर- आयोग (१९४८-४६) ने विद्यालयों में धार्मिक तथा स्वती, विवेकानन्द, बालगंगाधर तिलक, अरविंद नैतिक शिक्षा को विभिन्न कार्यक्रमों में सम्मिलित घोष और गाँधी आदि ने बालक के जीवन में किये जाने पर बल दिया। १९५२-५३ के माध्यमिक : जैन संस्कृति के विविध आयाम ३३६ COME -e . साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Yucation International NS Private & Personal Use OnlyPage Navigation
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