Book Title: Dharmik Tatha Naitik Shiksha Author(s): Hemlata Talsera Publisher: Z_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf View full book textPage 5
________________ इसी कारण भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों, परम्पराओं पाठ्यक्रम, पाठ्य-चर्चा, पाठय-विषयों एवं पाठ्यका विघटन ही हुआ है। अनुकरण के नाम पर क्रमोत्तर क्रियाओं द्वारा विद्यालय के वातावरण को गुणों, आदर्शों, मूल्यों के नाम पर कुत्सित, अनैतिक सहज सौहार्दपूर्ण बनायें। मात्र परीक्षा उत्तीर्ण जैसी चीज को अपना रहे हैं / यही कारण है कि करना ही अपना उद्देश्य नहीं बनाएँ वरन् छात्रों मानवीय गुणों के विपरीत आज अपराधों में वृद्धि को मानव तथा निष्ठावान नागरिक बनाने में मदद हुई है / मूल्यों, व्यवहारों आदि को बदलते रहने करें। उन्हें सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजके कारण व्यक्ति का 'स्तत्व' 'अपनापन' खो गया नैतिक व्यवस्था का व्यावहारिक ज्ञान देकर समाज है / वह तय नहीं कर पाता है कि पिता का सेल्स- के अनुरूप तैयार करें। टेक्स, इन्कम टेक्स बचाने वाला, मिलावट का धन विद्यालयों के अतिरिक्त समाज के अन्य अभिकमाने वाला रूप सही है या घर-समाज में ईमान __ करण, सभी वर्ग भी पूर्ण ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठता दारी तथा कर्तव्यपरायणता की डुगडुगी पीटने का उदाहरण प्रस्तुत करें। समाज में अपनी-अपनी वाला रूप ? भूमिका सही रूप में निभाएं तभी समाज में नैतिक युवा-शक्ति एवं मूल्य संक्रमण की समस्या आज आध्यात्मिक एवं मानवीय गुणों की महक सुवासित हमारे समक्ष एक चुनौती बनकर खड़ी है / आव- होगी / ऐसा वातावरण निर्मित किए जाने पर बल दि श्यकता इस बात की है कि शिक्षक, शिक्षार्थी, दिया जाए जिससे मूल्यहीनता, दिशाहीनता, कूपअभिभावक, नेता, समाज-सुधारक, अधिकारी आदि मण्डूकता से बाहर निकला जा सके। नैतिक एवं सभी लोग अपने दायित्व को समझें, आदर्श प्रस्तुत सांस्कृतिक मूल्यों के विकास हेतु हर वर्ग यदि सहकरें, सुदृढ़ चरित्र रखें, ज्ञान कर्म तथा भावना से योग करेगा तभी आतंकित एवं त्रस्त मानवता को नैतिक आचरण करें। शिक्षा संस्थाएँ शिक्षा के मुक्ति मिल सकेगी। र पियंकरे पियवाई से सिक्खं लडु गरिहइ / -उत्तरा. 11/14 वही शिष्य अथवा शिक्षा प्राप्ति के लिए समुत्मक, उद्योगी अपनी अभीष्ट शिक्षा (विद्या अथवा कला) को सीख सकता है, जो प्रिय वचन बोलता है और अन्य लोगों (विशेष रूप से शिक्षक, सहपाठी, मित्र जन, माता-पिता, बन्धु बान्धवों) को प्रिय लगने वाले कार्य करता है। 342 चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ 6. Jain Ection International ivate & Personal usePage Navigation
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