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धर्म-शासन को देती है में प्रथम शिक्षा प्राप्त करने के लिए कहते हैं। अशिक्षित, अधर्मशील, लोभी, घर के दुखिया, उदरम्भरि आदिक कभी भी इस संस्था की दीक्षा नहीं पा सकते चाहे वे बालिग हों अथवा नाबालिग।
अब तक सहस्रशः इस संस्था में दीक्षाएँ हुई होंगी सरकार अपना रिकार्ड उठा कर देख सकती है एक भी दीक्षा की दीक्षितों के अभिभावकों की ओर से तथा दीक्षित की ओर से शिकायत नहीं आई होगी। सरकार नाबालिग दीक्षा निरोध बिल को कानून का रूप देने के लिए सुसज्जित हुई विदित होती है और ऐसी संस्थाओं को भो जिनमें से एक उदाहरण ऊपर दिया जा चुका है इस नियन्त्रण से मुक्त नहीं करना चाहती तो हंस को भी जो क्षीर-नीर विवेचन में अपनी एक अद्भुत ही शक्ति रखता है मछलियों के ताक में बैठे हुए समाधि छलधारी बगुलाओं की श्रेणी में गिनना चाहती है। सेतु वहीं बान्धना चाहिए जहां जल प्रवाह उमड़ रहा हो जहाँ जल की बिन्दु भी न हो वहाँ वह अनावश्यकीय है। तेरापन्थ संस्था की अपनी ही कानून दीक्षा की अव्यवस्था को रोकने के लिए अति पर्याप्त है जो कि मनसा वाचा कर्मणा पूर्ण रूप से पाली जाती है । रही नाबालिगों की दीक्षा कि जिसका नाम ही सुन कर सरकार चौंक उठती है क्या हिताहित कर रही है यह मनन करने के योग्य है। यद्यपि नाबालिग बालिगों का-सा अनुभव नहीं रखता तथापि जो तत्व खिले हुए रूप में बालिगों में विद्यमान हैं वे ही मुकुलित अवस्था में नाबालिगों में भी मिलेंगे। विद्वानों का कर्तव्य है कि वे बालकों के मस्तिष्क की परीक्षा करें जिस कार्य के करने की योग्यता के तत्व उनमें विद्यमान हों उसी कार्य में उनका प्रवेश करे जैसे कि कोई बालक गणित-विद्या में कोई साहित्य रसिकता में कोई गान विद्या में अथच कोई शिल्पकला में पूर्ण होने की विशेष शक्ति रखता है तो अध्यापकों का कर्तव्य है कि नाबालिग अवस्था में ही उसको उसी में प्रविष्ट करे । जिस बालक के मस्तिष्क
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