Book Title: Dharm Dhyan Ek Anuchintan Author(s): Kanhaiyalal Lodha Publisher: Z_Sadhviratna_Pushpvati_Abhinandan_Granth_012024.pdf View full book textPage 6
________________ साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन गान्थ / .... + + + +++ परिजन, स्त्री, मित्र आदि आश्रय लेने योग्य हो हो नहीं सकते। ऐसा अनुभूति के स्तर पर बोध कर अनित्य पदार्थों का आश्रय त्याग कर देना, अविनाशी स्वरूप में स्थित हो जाना अशरणानुप्रेक्षा है / ___ संसारानुप्रेक्षा--साधक जब ध्यान की गहराई में प्रवेश करता है तो अनुभव करता है कि संवेदनाएँ उसे अशान्त बना रही हैं, जला रही हैं, सारा अन्तर् और बाह्य लोक प्रकंपन की आग में जल रहा है। संसार में एक क्षण भी लेश मात्र भी सुख नहीं हैं / जो बाहर से साता व सुख का वेदन हो रहा है वह भी भीतरी जगत में दुख रूप ही अनुभव हो रहा है, आकुलता, उत्तेजना पैदा कर रहा है / संवेदना चाहे वह सुखद ही वस्तुतः वह वेदना ही है अर्थात् दुख रूप ही है / दूख से मुक्ति पाने के लिए इस संसार से, शरीर से अतीत होने में ही कल्याण है अर्थात् लोकातीत, देहातीत, इन्द्रियातीत होने में ही अक्षय, अव्याबाध, अनन्त सुख की उपलब्धि सम्भव है। इन चारों अनुप्रेक्षाओं में से एकत्वानुप्रेक्षा से ध्र वता-अमरत्व का अनुभव, अनित्यानुक्षा से वैराग्य, अशरणानुप्रेक्षा से पराश्रय (परिग्रह) का त्याग, संसारानुप्रेक्षा से संसार से अतोत के जगत में प्रवेश होता है / इसे ही आगम की भाषा में व्युत्सर्ग कायोत्सर्ग कहा है / व्युत्सर्ग अर्थात् लोकातीत होना, कायोत्सर्ग अर्थात देहातीत होना ध्यान से उत्तरवर्ती स्थिति है। उपसंहार - मानव वही है जो साधक है। साधक वह है जो साधना करता है / साधना है बहिर्मुखी से अन्तर्मुखी होने का क्रियात्मक रूप व प्रक्रिया धर्म-ध्यान है। धर्म-ध्यान से ग्रन्थियों का वेधन व दमन होकर पर का तादात्म्य टूटता है / तादात्म्य टूटने से कर्म कटते हैं / कर्म का कटना ही बन्धन से छूटना है, मुक्त होना है / अतः धर्म-ध्यान साधना का आधार है, सार है / यही कारण है कि जब कोई भी व्यक्ति श्रमण के दर्शनार्थ आता है तो श्रमण उसे आज भी "धर्म-ध्यान करो" इन शब्दों से सम्बोधित करता है / जो धर्म-ध्यान की महत्ता का सूचक है। धर्मध्यान रहित जीवन साधक का जीवन नहीं है। भोगी जीवन है / भोगी जीवन पशु-जीवन है, मानव-जीवन नहीं / अतः मानव जीवन की सार्थकता तथा सफलता इसी में है कि धर्म-ध्यान को धारण कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होवें / MKVNI iiiiiiiiiiiHR EE 374 सातवां खण्ड : भारतीय स्कति में योग NERAMANG Ref . .... . JEETEE ants w.jainelibrary 2017Page Navigation
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