Book Title: Dhammapada 10
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 13
________________ इन कथाओं और सूत्रों के बारे में कहीं ओशो ने कहा भी है कि ये कथाएं इतिहास नहीं हैं, ये कथाएं पुराण हैं । पुराण और इतिहास में फर्क है । इतिहास का मतलब होता है : जो हुआ। पुराण का अर्थ होता है : जो अभी हो रहा है। फर्क समझ लेना। इतिहास का मतलब है : जो हो कर चुक गया । पुराण का मतलब है : जो सदा हो रहा है। जो कभी चुकता नहीं, पुरता नहीं - पुराण । घटता ही रहता है, होता ही रहता है। सदा ऐसा हुआ है, सदा ऐसा हो रहा है और सदा ऐसा होता रहेगा। इतिहास समय में घटता है, पुराण शाश्वत की तरफ इंगित करता है । अपने इन दस प्रवचनों में गौतम बुद्ध की इन गाथाओं पर ओशो का बोलना उसी शाश्वत की ओर इंगित है। मनुष्य की मूर्च्छा सनातन है, उसके दुख और क्लेष सनातन हैं— और उनका उपचार भी सनातन है। ओशो कहते हैं कि जिस दिन तुम इन सूत्र - संदर्भों को इस भाव में समझोगे, तुम पाओगे ये तुम्हारे लिए सीधे-सीधे दिए गए सूत्र हैं—ये तुम्हारे लिए हैं। यह तुम्हारी बीमारी का उपचार हैं। यह औषधि तुम्हारे लिए है। नहीं तो अक्सर ऐसा होता है, किसी और को कहा बुद्ध ने, ढाई हजार साल पहले कहा बुद्ध ने, अब तो संगत भी नहीं है। फिर किसी को कहा था, उसके लिए संगत रहा होगा। बुद्ध पुरुष जो कहते हैं, वह एक गहरे अर्थ में सदा ही संगत होता है । परिस्थिति ऊपर से बदल जाती है, भीतर से आदमी नहीं बदलता। आदमी वही का वही है – वैसा ही रुग्ण, वैसा ही क्रुद्ध, वैसा ही कामी, वैसा ही लोभी, वैसा ही शेखचिल्ली । कोई फर्क नहीं हुआ। अगर बुद्ध आज फिर पैदा हों पच्चीस सौ साल के बाद, तो तुम्हें देख कर पहचानने में उन्हें जरा भी अड़चन नहीं होगी। तुम्हें देख कर वे तत्क्षण पहचान लेंगे अपने पुराने परिचितों को। कोई भेद नहीं होगा। आदमी ठीक वैसा का वैसा है। एक कहावत है न कि सूरज के तले कुछ भी नया नहीं। लेकिन एक दूसरी कहावत भी है कि सूरज के तले सब कुछ नया है । ओशो कहते हैं कि ये दोनों कहावतें सही हैं। जहां तक बाहर की बातों का संबंध है, सूरज के तले सब कुछ नया है, कुछ भी पुराना नहीं है। जहां तक भीतर की बातों का संबंध है, सूरज के तले सब कुछ पुराना है, कुछ भी नया नहीं है । घर बदल गए, रास्ते बदल गए, साज- सामग्री बदल गयी, आदमी वही का वही । परिस्थिति बदल गयी, मनःस्थिति वही की वही है । इसलिए ये जो संदेश हैं, ये कभी बासे नहीं पड़ते, पुराने नहीं पड़ते । इन्हें पुनरुज्जीवित किया जा सकता है। इनमें से फिर तुम्हारे लिए ज्योति जल सकती है, फिर दिया प्रकट हो सकता है। इनसे तुम्हें फिर राह मिल सकती है। बुद्ध की ये बोधकथाएं, उनके ये सूत्र और उन पर ओशो के ये अमृत प्रवचन हमारे लिए पथ के प्रदीप हैं। इन बोधकथाओं एवं सूत्रों की अंतरात्मा है : ध्यान । ध्यान के पाथेय से ही पथ प्रकाशित होता है, जीवन प्रदीप्त होता है और हजार सुखों को उपलब्ध होता है । स्मरण रहे कि ये सुख भीतरी हैं, भीतर की संपदा हैं। ओशो

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