Book Title: Dhammapada 10
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 12
________________ आज से पच्चीस सौ वर्ष पूर्व इस धरती पर गौतम बुद्ध हुए–गौतम तो विदा हो गए, लेकिन बुद्ध आज भी विद्यमान हैं। बुद्ध सदा विद्यमान हैं। आज बीसवीं सदी में पुनः इस धरती पर एक संबुद्ध चेतना प्रगट हुई—भगवान श्री रजनीश के नाम-रूप में। नाम-रूप सब विदा हो गए—वह संबुद्ध चेतना विद्यमान है। इस चेतना के लिए एक नया और एक अर्थ में सनातन-संबोधन है: ओशो। ओशो अर्थात चेतना का बहु-आयामी विस्तार। ओशो : जिस पर आकाश फूलों की वर्षा करता है। ओशो : जो ओशऐनिक (OCEANIC) है। जो बूंद-तुल्य, नाम-रूप-आकार न हो कर स्वयं सागर (OCEAN) हो गया है, असीम हो गया है। ओशो बुद्ध हैं। बुद्ध ओशो हैं। एस धम्मो सनंतनो। यही धार्मिकता की सनातन धारा है। उनका एक ही संदेश है : ध्यान। चाहे बुद्ध उसे बोधगाथाओं के माध्यम से कहें और चाहे ओशो अपनी आधुनिकतम भाषा में कहें। बुद्ध की प्राचीन बोधगाथाएं ओशो की आधुनिक अभिव्यक्ति-शैली में पुनः जीवंत हो गयी हैं, वे फिर से समकालीन हो गयी हैं। और एक अर्थ में स्वयं बुद्ध ओशो के समकालीन हो गए हैं।

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