Book Title: Dev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Author(s): 
Publisher: Muni Manisagar

View full book text
Previous | Next

Page 2
________________ !! श्रीजिनाय नमः ॥ देवद्रव्यका शास्त्रार्थसंबंधी पत्रव्यवहार संक्षेप में देवद्रव्यका साररूप निर्णय। और मंदिर में श्रीजिनेश्वर भगवान्की पूजा आरती करन संबंधी वोलीके चढाये का वन्य भगवान को अर्पण होता है, इसलिये वह द्रव्य भगवान की भक्ति के सिवाय अन्य जगह नही लग साता. जिसपर भी उस द्रव्यको अभी साधारण माने में लेगान संबंधी श्रीगान् विजयधर्म रिजी की नवीन प्ररूपणारूप यह देवव्यती चर्चान जैन समाज में चंहन विरोध भाव फैलाया है, हजारों लोग, संशय में गिरे हैं, लाखों रुपयोंकी देवदन्यकी आवक को बड़ा भारी धया पहुंचा है, इस विषय का पूरापूग समाधान पूर्वक निर्णय होने के लिये बहुत लोग उत्कांटिन हो रहे हैं, इस नवीन प्रपणावी चर्चा संबंधी श्रीमान-विजयकगलगरिजी आनन्दसागर सरिजी वगैरह अनुमान डंद सी दो सौ मुनिजन सामने हुए थे, मगर न्यायपूर्वक शांतिम अभीतका उसका निर्णय होकर समाज का गपूरा समाधान नहीं हो सका और आपस में छापाछापी से हजारोंका 'खर्चा हो गया, निंदा, ईपीस श बढ गया, लोगोंके कर्मबंधन बहुत हुए, और शासनकी हीलनाभी हुई, कुछ सार निकला नहीं। इधर श्रीमान् विजयधर्म सूरिजी की तरफ से गये आसोज महिने के जैनपत्र में इस विषयके शास्त्रार्थ करनकी जाहिर सूचना प्रकट हुई थी, मगर उनके सामने .. कोईभी साधु शास्त्रार्थ करने को वडा नहीं हुआ. उससे संगाजमें बडी गारी खलभली मची, लोगोंकी शंकाने विशेष जोर किया और भविष्यमें ।

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 ... 96