Book Title: Descriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 13
Author(s): P K Gode
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

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Page 456
________________ 1252.] Story Literature 431 पञ्चतन्त्र Pañcatantra 456. No. 1252 1895-1902. Size.- Io in. by 4t in. Extent.-- 69 leaves ; 14 lines to a page ; 55 letters to a line. Description.-Country paper; Devanagari characters with पृष्ठमात्राs; old in appearance ; hand-writing very small but legible and beautiful ; borders ruled in triple red lines and edges in single ; red pigment frequently used ; square blanks having only 2 or 3 letters are to be seen in the centre of folios ; complete. Age.- Samvat 1763 (= A. D. 1706) Author.- Visnusarma Begins.- fol. r" ॥ ए६० ।। ॐ नमः सर्वज्ञाय || मनवे वाचस्पतये शुक्राय परासराय समताय ।। चाणिक्याय च विदुषे नमोस्तु नयशास्त्रकर्तृभ्यः ॥१॥ सकलार्थशास्त्रसारं जगति समालोक्य विष्णुशमेदं ।। तंत्रैः पंचभिरतुलं चकार सुमनोहरं शास्त्रं ॥२॥ etc. Ends. -- fol. 696 __ अत्रांतरे मंथरकः समागत्य निःशंकमालिंगनचुंबनादिमिनिस्तनीमुपभोक्तुमुपचक्रमे अंधोपि सर्वमालोकयन्नपि किंचिच्छत्रमऽपश्यन् क्रोधांधः पूर्ववत्समीपं गत्वा मंथरकं चरणाभ्यामादाय शरीरबलसामर्थ्यान्मस्तको परि अभ्य तं त्रिस्तनी हृदये व्यताडयत् अथ कुब्जकशरीरे प्रहारेण तस्यास्तुतीयस्तनोंऽतः प्रविष्टः पृष्टप्रदेशः स्तनस्पर्शात कुब्जकस्य सरलतां गतः अतोऽहं ब्रवीमि अंधकब्जकश्वेति कथा ॥११॥ सुवर्णसिद्धः प्राह भोः सत्यमेतदभिहितं त्वया दैवानुकूलतया सर्वत्र कल्याणं संपद्यते परं तथापि पुरुषेण दैवमंगीकृत्यनयो न त्याज्यो यथा त्वया मम वाक्यमकुर्खता त्यक्तः एवमुक्त्वा सुवर्णसिद्धमनुज्ञानाय स्वगृहं प्रतिनिवृत्तः। इति समाप्तं चेदमपरीक्षितकारिता नाम पंचमं तवं यस्यायमाचः श्लोकः । कदृष्टं परिज्ञातं कुकृतं परीक्षित ।

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