Book Title: Darshan aur Vigyan ke Alok me Pudgal Dravya
Author(s): Gopilal Amar
Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf

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Page 18
________________ 0-0-0--0-0-0-0-0-0-0 गोपीलाल अमर : दर्शन और विज्ञान के आलोक में पुद्गल द्रव्य : ३८५ स्थितिबन्ध-कार्मण वर्गणाओं में आत्मा के साथ बद्ध रहने की काल-मर्यादा पड़ना, स्थिति बन्ध है. अनुभागबन्ध-कार्मणवर्गणाओं में फल देने की न्यूनाधिक शक्ति उत्पन्न होना, अनुभाग बन्ध है. प्रदेशबन्ध-कार्मणवर्गणा के दलिकों की संख्या का नियत होना, प्रदेशबन्ध है. सूक्ष्मता—सूक्ष्मता का अर्थ है छोटापन, यह दो प्रकार का है---अन्त्य सूक्ष्मता और आपेक्षिक सूक्ष्मता. अन्त्यसूक्ष्मता परमाणुओं में ही पाई जाती है और आपेक्षिक सूक्ष्मता दो छोटी-बड़ी वस्तुओं में तुलनात्मक दृष्टि से पाई जाती है. स्थूलता- स्थूलता का अर्थ बड़ापन है. वह भी दो प्रकार का है-अन्त्य स्थूलता जो महास्कन्ध में पाई जाती है और आपेक्षिक स्थूलता जो छोटी-बड़ी वस्तुओं में तुलनात्मक दृष्टि से पाई जाती है. संस्थान (आकार)–संस्थान का अर्थ है-आकार, रचनाविशेष. संस्थान का वर्गीकरण दो प्रकार से देखने में आता है. प्रथम प्रकार से उसके दो भेद हैं—इत्थं संस्थान, जिसे हम त्रिकोण, चतुष्कोण, गोल आदि नाम देते हैं और अनित्थंसंस्थान, जिसे हम अनगढ़ भी कह सकते हैं, उसको कोई खास नाम नहीं दिया जा सकता तथापि उसे छह खण्डों में विभक्त किया गया है—उत्कर, चूर्ण, खण्ड, चूणिका, प्रतर और अणुचटन. संस्थान का द्वितीय प्रकार से वर्गीकरण मानव-शरीर को दृष्टिगत रखकर किया जाता है-समचतुरस्र, न्यग्रोध, परिमण्डल, स्वाति, कुब्जक, वामन और हुण्डक. भेद (खण्ड)-स्कन्धों का विघटन अर्थात् कुछ परमाणुओं का एक स्कन्ध से विच्छिन्न होकर दूसरे स्कन्ध में मिल जाना भेद कहलाता है. तम (अन्धकार)-जो देखने में बाधक हो और प्रकाश का विरोधी हो वह अन्धकार है: कुछ अजैन दार्शनिकों ने अंधकार को कोई वस्तु न मानकर केवल प्रकाश का अभाव माना है पर यह उचित नहीं. यदि ऐसा मान लिया जाय तो यह भी कहा जा सकेगा कि प्रकाश भी कोई वस्तु नहीं है, वह तो केवल तम का अभाव है. विज्ञान भी अंधकार को प्रकाश का अभावरूप न मानकर पृथक् वस्तु मानता है. विज्ञान के अनुसार अंधकार में भी उपस्तु किरणों (Infre-red heat rays) का सद्भाव है जिनसे उल्लू और बिल्ली की आँखें तथा कुछ विशिष्ट आचित्रीय पट (Photographic plates) प्रभावित होते हैं. इससे सिद्ध होता है कि अंधकार का अस्तित्व दृश्य प्रकाश (visible light) से पृथक् है. छाया-प्रकाश पर आवरण पड़ने पर छाया उत्पन्न होती है:२ प्रकाश-पथ में अपारदर्शक कायों (opequc bodies) का आ जाना आवरण कहलाता है. छाया को अंधकार के अंतर्गत रखा जा सकता है और इस प्रकार वह भी प्रकाश का अभावरूप नहीं अपितु पुद्गल की पर्याय सिद्ध होती है. विज्ञान की दृष्टि में अणुवीक्षों (Lenses) और दर्पणों के द्वारा निर्मित प्रतिबिम्ब दो प्रकार के होते हैं, वास्तविक और अवास्तविक. इनके निर्माण की प्रक्रिया से स्पष्ट है कि ये ऊर्जा प्रकाश के ही रूपान्तर हैं. ऊर्जा ही छाया (shadows) और वास्तविक (Real) एवं अवास्तविक (virtual ) प्रतिबिम्बों (images) के रूप में लक्षित होती है. व्यतिकरण पट्टियों (interference bands) पर यदि एक गणनायंत्र (Counting machine) चलाया जाय तो काली पट्टी (Dark Band) में से भी प्रकाश वैद्युत रीति से (photo electrically) विद्यु दणुओं [Electrons] का निःसरित होना सिद्ध होता है. तात्पर्य यह कि काली पट्टी केवल प्रकाश के अभावरूप नहीं, उसमें भी ऊर्जा होती है और इसी कारण उससे विद्युदणु निकलते हैं. काली पट्टियों के रूप में जो छाया [shadows] होती है वह भी ऊर्जा का ही रूपान्तर है. १. तमो दृष्टिप्रतिबन्धकारणं प्रकाशविरोधि-प्राचार्य पूज्यपादः सर्वार्थसिद्धि, अ०५, सू० २४. २. छाया प्रकाशावरणनिमित्ता।--वही, अ०५, सू० २४. MAM Va CRICA Jain Education Temational PHA 2% NO COM For Private & Personal use only 66 www.jammelibrary.org

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