Book Title: Darshan aur Vigyan ke Alok me Pudgal Dravya
Author(s): Gopilal Amar
Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf

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Page 1
________________ श्रीगोपीलाल अमर एम०ए०, शास्त्री, काव्यतीर्थ, साहित्यरत्न जैन संस्कृत डिग्री कालेज, सागर (म० प्र०) दर्शन और विज्ञान के आलोक में पुद्गल द्रव्य प्रारम्भिक-जैन दर्शन ने विश्व को जहाँ स्याद्वाद और अनेकान्त के अखण्ड सिद्धान्त दिये हैं वहाँ पूदगलद्रव्य की अद्वितीय मान्यता भी दी है. उधर जैनेतर दर्शनों ने पुद्गल द्रव्य को तत्तत् रूपों में स्वीकार किया है और इधर विज्ञान भी इस द्रव्य को स्पष्ट रूप से मान्यता देता जा रहा है. हम यहाँ पुद्गल द्रव्य का एक सुस्पष्ट विश्लेषण प्रस्तुत करने का प्रयत्न करेंगे. सर्वप्रथम हमें जैन दर्शन के अनुसार इस का अध्ययन करना होगा, फिर जैनेतर दर्शनों में उसकी तह खोजनी होगी और तब उसका वैज्ञानिक विश्लेषण करना होगा. जैन सिद्धान्त विश्व (Universe) को छह द्रव्यों (Substances) से निर्मित मानता है. जो सत् (Existent) हो या जिसकी सत्ता (Existance) हो वह द्रव्य है.' जिसमें पर्यायों (Modifications) की दृष्टि से उत्पाद (Manifestation) और विनाश (Disappearance) प्रतिसमय होते रहते हों और गुणों (Fundamental realities) की दृष्टि से, प्रतिसमय ध्रौव्य (Continuity) रहता हो वह सत् (Existent) है. द्रव्य छह है. (१) जीव (Soul, substance possessing consciousness) (२) पुद्गल (Matter & Energy) (३) धर्म (Medium of motion of souls, matter and energies) (४) अधर्म (Medium of rest of souls, matter and energies) (५) आकाश (Spacc, medium of location of soul etc.) और (६) काल (Time) पुद्गल का स्वरूप-पुद्गल शब्द एक पारिभाषिक शब्द है लेकिन रूढ़ नहीं. इसकी व्युत्पत्ति कई प्रकार से की जाती है. पुद्गल शब्द में दो अवयव हैं, 'पुद्' और 'गल', 'पुद्' का अर्थ है पूरा होना या मिलना (Combination) और १. सद् द्रव्यलक्षणम् । ---आचार्य उमास्वामी : तत्त्वार्थमूत्र, अ०५, सू० २६. २. उत्पादव्ययधौव्ययुक्तं सत् । -वही, अ० ५, सू० ३० । ३. जीवा पुग्गलकाया धम्माधम्मा तहेव आयासं. -आचार्य कुन्दकुन्दः पंचास्तिकाय. Jain Education Inter For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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