Book Title: Dalsukhbhai Malvaniya Pandit
Author(s): Vijaydharmsuri Jain Sahitya Survarnachandrak Samarpan Samaroh Bhavnagar
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Sahitya Survarnachandrak Samarpan Samaroh Bhavnagar

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Page 34
________________ जैन और हिन्दु - : श्रमण १. ११ सित. '५०. भ. महावीर और मार्क्सवाद : श्रमण अकतू . ०. 'न्यायसंपन्नविभवः' : श्रमण २. १ नवे. ',०. आत्महित बनाम परहित : श्रमण २. ३ जनवरी '५१. 'मुझे शीघ्र भूल जाना' : तरुण फरवरी-मार्च '५१. संन्यासमार्ग और महावीर : 'आज १-४-'५१, श्रमण मार्च '५३. बनारससे जैनोंका संबंध : श्रमण २. ७ मई ५१. भक्तिमार्गका सिंहावलोकन : श्रमण २. ६, जुलाई '५१. साधुसमाज और निवृत्ति श्रमण ३. २ दिसंबर '५१. श्रद्धा का क्षेत्र : श्रमण ३. ५ मार्च '५२. मार्गदर्शक महावीर : श्रमण ३.६ अप्रिल '५२. सादडीके दो संमेलन : श्ररण ३. ७-८ मई-जून '५२. श्रद्धाका क्षेत्र : श्रमण मार्च '५२. क्या मैं जैन हूँ : श्रमण ३. १० अगस्त '५२. गुजरातके लोककवि मेघाणी : जनपद '५२. 'असंयत जीवका जीना चाहना राग है' : श्रमण ४. ३ जनवरी '.३. भौतिकता और अध्यात्मका समन्वय : श्रमण ४. ६, अप्रेल '५३. व्यक्तिनिष्ठाका पाप : तरुण १५-५-५३. मलधारी अभयदेव और हेमचन्द्राचार्यः श्रमण ४. १२ अकटो. '५३. भगवान महावीर : जैन जगत, अप्रैल-मई '५६. सिद्धिविनिश्चय और अकलंक : जैन संदेश, श्रमण ५. ४, फेब्रु. ५४. भ० महावीरके गणधर : श्रमण ५. ५, मार्च ५४. उपशमनका आध्यात्मिक पर्व : श्रमण ५. ११, सितं ५४. जैन साहित्यके इतिहास की प्रगति : श्रमण ६. २ डिसम्बर ५४. [33 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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