Book Title: Chinnou Jinvara Rou Stavan
Author(s): Mehulprabhsagar
Publisher: Mehulprabhsagar

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Page 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailass agarsuri Gyanmandir 24 March-2017 ॥३॥ ॥४॥ SHRUTSAGAR रिसहजिण अजित संभव अभिनंदणं सुमति पदमप्रभुं तिम सुपासं जिनं। चंदप्रभु सुविधि शीतलह श्रेयांस ए वासुपूज विमल जिन अनंत सुप्रशंस ए धर्मजिन शांतिजिन कुंथु अरिदेव ए मल्लि मुणिसुव्वयं नमिजिणं सेव ए। नेमि वलि पासजिण वीर वर्धमान ए नमुं चौवीसजिण एह वर्तमान ए ॥ढाल-२ ॥ केवलज्ञानी तिम निरवाणी ए सागर महायश विमल वखाणी ए। सर्वानुभूति श्रीधर दत्त देव ए दामोदर श्रीसुतेजा सेव ए॥ (तर्ज-अष्टापदे श्री आदिजिनवर) सेवए स्वामि मुनिसुव्रत सुमति शिवगति नाम ए अस्ताघ जिनवर वलि नमीसर अनल जसधर साम ए प्रणमुं कृतारथ श्री जिणेसर शुद्धमति जिन शिवकरू स्यन्दन अने संप्रति सुनामै अतीत कालै जिनवरू ॥ ढाल-३ ॥ (ढाल वीर जिणेसर नी) पदमनाभ सूरदेव सुपास स्वयंप्रभु सुनिहालि सरवानुभूति देवश्रुती उदय देव पेढाल । पोटिल शतकीरति रति वखाणि सुव्रत सेवीजै अमम नि:कषाय नि:पुलाक निर्मम निरखीजइ चित्रगुप्त नमीयै समाधि संवर श्रीयशोधर विजय मल्लि जिनदेव दोइ अनंतवीर्य भद्रंकर । एह अनागत काल हुसी चौवीस तिथंकरु त्रिकरण वंदीजइ सदीव परतखि ए सुरतरु ॥५॥ ॥६॥ |७|| For Private and Personal Use Only

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