Book Title: Chinnou Jinvara Rou Stavan
Author(s): Mehulprabhsagar
Publisher: Mehulprabhsagar

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailass agarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 25 March-2017 // 8 // // 9 // // 10 // // ढाल-४॥ (राग-चोपई) सीमंधर युगमंधर सामि बाहु सुबाहु नमुं सिरनामी श्रीसुजात देवसेन वखांणि, स्वयंप्रभु ऋषभानन वलि जाणि सूरप्रभु तिम सामि विसाल, वज्रधर चंद्रानन सुनिहाल चंद्रबाहु तिम देव भुजंग, ईसर नेमिप्रभु मनरंग वीरसेन महाभद्र देवयशा, अनंतवीरय नमतां सुभदशा विहरमान ए जिनवर वीस, भावें प्रणमीजै निसदीस ऋषभानन चंद्रानन देव, वारिषेण वधमान सुसेव ए चिहं नामे जिन सासता, प्रणमीजै आणी आसता ए च्यारे चउवीसी करी, छिन्नूं जिनवर भवजलतरी जपतां एहना मनसुध जाप, जायै सहु भवभवना पाप कलश इम भविय सुहकर सयल जिणवर च्यारी चउवीसी तणा छन्नवे संख्या हुवै सहुनी नमो भो भवियण जणा उवझाय वर श्री लक्ष्मीकीरति चरणपंकज मधुकरू श्री लच्छीवल्लभ भाव शुद्ध जपै अहनिसि जिनवरू // इति छिन्नू जिनवरांरौ स्तवन समाप्तम् // // 11 // // 12 // // 13 // प्राचीन साहित्य संशोधकों से अनोध श्रुतसागर के इस अंक के माध्यम से प. पू. गुरुभगवन्तों तथा अप्रकाशित कृतियों के ऊपर संशोधन, सम्पादन करनेवाले सभी विद्वानों से निवेदन है कि आप जिस अप्रकाशित कृति का संशोधन, सम्पादन कर रहे हैं या किसी पूर्वप्रकाशित कृति का संशोधनपूर्वक पुनः प्रकाशन रहे हैं अथवा महत्त्वपूर्ण कृति का अनुवाद या नवसर्जन कर रहे हैं, तो कृपया उसकी सूचना हमें भिजवाएँ, इसे हम श्रुतसागर के माध्यम से सभी विद्वानों तक पहुँचाने का प्रयत्न करेंगे, जिससे समाज को यह ज्ञात हो सके कि किस कृति का सम्पादन कार्य कौन से विद्वान कर रहे हैं? यदि अन्य कोई विद्वान समान कृति पर कार्य कर रहे हों तो वे वैसा न कर अन्य महत्त्वपूर्ण कृतियों का सम्पादन कर सकेंगे. निवेदक- सम्पादक (श्रुतसागर) For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5