Book Title: Chedsutra Ek Anushilan Author(s): Dulahrajmuni Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf View full book textPage 5
________________ 3 यतीन्द्र सूरि स्मारकग्रन्थ - जैन आगम एवं साहित्य - कहा जा सकता है कि आगम-साहित्य में छेदसूत्रों का 16. आवश्यकसूत्र, 8 छन्वीसाए दसाकप्पणवहाराणं महत्त्वपूर्ण स्थान है। आचार में स्खलना होने पर ये ग्रन्थ नियमों- उद्देसणकालेहि। उपनियमों का निर्धारण करते हैं, अतः नीतिशास्त्र की दृष्टि से भी 17. व्यवहारसूत्र 10/25 : तिवासपरियायस्स समणस्स इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है। निग्गंथस्स कप्पइ आयारकप्पं नामं अज्झयणं उद्दिसित्तए। 18. व्यभा 4432-4436 सन्दर्भ 19. पंचकल्पचूर्णि (अप्रकाशित) दशवकालिक अगस्त्यसिंह, चूर्णि पृ. 2 20. A History of ...p.446. नंदी सू. 77, 78 21. व्यभा.१७३७ व्यवहारभाष्य 1829 : जम्हा तु होति सोधी, छेदसुयत्थेण 22. पंकभा. 26-29 खलितचरणस्स। 23. पंकभा.४२ तम्हा छेदसुयत्थो, बलवं मोत्तूण पुव्वगतं / / 24. दशाश्रुतस्कंधचूर्णि,पृ. 3 निशीथभाष्य 6184, चू.पृ. 253 25. पंकभा.४३-४६ निशीथभाष्य 6395, व्यभा. 320 26. पंकभा.४७, 48 व्यभा. 4432-35 27. गोम्मटसार,जीवकाण्ड 367, 368 7. निभा 5947 चू.पृ. 190, व्यभा.६४६। टी.प. 58 28. धवला पु. १,पृ. 96 8. निभा.६२२७ चू.पृ. 261 29. तत्त्वार्थसूत्र 2/20 पंचकल्पभाष्य 1223 : णाऊणं छेदसतं, परिणामगे होतिं 30. आवश्यकनियुक्ति 777 दायव्वं। 31. कल्पसूत्र,भू.पृ. 8 10. व्यभा-४१००, 4101 32. आवनि.६६५ मटी पृ. 341: पदविभागसामाचारी - 11. व्यभा 1739 छेदसूत्राणि। 12 (क) व्यभा.४१७३; 33. दश्रुचू. पृ. 2 / इमं पुण छेयसुत्तपमुहभूतं। सव्वं पि य पच्छित्तं, पच्चक्खाणस्स ततियवत्थुम्मि। 34. निसीहज्झयणं,भूमिका पृ. 3, 4 तत्तो च्चिय निज्जूढं, पकप्पकप्पो य ववहारो।। 35. जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश, भा. 2, पृ. 306, बज्झाणुट्ठाणेणं, (ख) पंकभा. 23 : आयारदसा कप्पो, वनहारो जेण ण बहिज्जए तयं णियमा। नवमपुव्वणीसंदो। संभवइ य परिसुद्धं। सो पुण धम्मम्मि छेउ ति।। (ग) आचारांगनियुक्ति 291 : 36. बृहत्कल्पभाष्य-पीठिका,पृ. 4 आयारकप्पो पुण, पच्चक्खाणस्स ततियवत्थूओ। 37. निभा.६९ आयारनामधेज्जा, वीसइमा पाहुडच्छेदा। जीतकल्पचूर्णि पृ. 1. कप्प-ववहार कप्पियाकप्पिय - (क) दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति चुल्लकप्प - महाकप्पसुयं वंदामि भद्दबाहुँ, पाईणं चरिमसगलसुयनाणीं। निसीहाइएसु छेदसुत्तेसु अइवित्थेरेण पच्छित्तं भणियं। सुत्तस्स कारगमिसिं, दसांसु कप्पे य ववहारे।। 39. आवनि.७७७, विभा. 2295 (ख) पंकभा. 12 : तो सुत्तकारओ खलु, स भवति 40. जैनधर्म पृ. 259 दसकप्पववहारे। 41. A History of the canonical Literature of the Jains, Page, 37 14. दश्रुनि.१, पंकभा-११ 42. A Hisotry of the canonical Literature of the Jains, Page 36 15. व्यवहारसूत्र 10/27 पंचवासपरियायस्स समणस्स 43. A History of the canonical Literature of the Jains, Page 36 44. A History ...........Page 464 निग्गंथस्स कप्पइ दसाकप्पववहारे उद्दिसित्तए। 38. 13. ( aniramidrohdnirankaridrioridrodutdoorridord-92drridridrodustandiraduadridroidroidrior Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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