Book Title: Chedsutra Ek Anushilan Author(s): Dulahrajmuni Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf View full book textPage 3
________________ यतीन्द्र सूरि स्मारकग्रन्थ - जैन आगम एवं साहित्य ने केशवभेरी एवं वैद्य के दृष्टान्त का भी उल्लेख किया है। २६ छेदसूत्रों का नामकरण नंदी में व्यवहार, बृहत्कल्प आदि ग्रंथों को कालिकश्रुत के अन्तर्गत रखा है। गोम्मटसार " धवला " एवं तत्त्वार्थसूत्र ९ में व्यवहार आदि ग्रन्थों को अंगबाह्य में समाविष्ट किया है। ऐसा प्रतीत होता है कि जब भद्रबाहु ने निर्यूहण किया तब तक संभवत: छेदग्रन्थों जैसा विभाग इन ग्रन्थों के लिए नहीं हुआ था । बाद में इन ग्रन्थों को विशेष महत्त्व देने हेतु इनको एक नवीन वर्गीकरण के अन्तर्गत समाविष्ट कर दिया गया। फिर भी 'छेदसूत्र' नाम कैसे प्रचलित हुआ, इसका कोई पुष्ट प्रमाण प्राचीन साहित्य में नहीं मिलता। छेदसूत्र का सबसे प्राचीन उल्लेख आवश्यक नियुक्ति में मिलता है । ३० विद्वानों ने अनुमान के आधार पर इसके नामकरण की यौक्तिकता पर अनेक हेतु प्रस्तुत किए हैं। छेदसूत्रों के नामकरण के बारे में निम्न विकल्पों को प्रस्तुत किया जा सकता है - ब्रिंग के अनुसार प्रायश्चित्त के दस भेदों में 'छेद' और 'मूल' के आधार पर आगमों का वर्गीकरण 'छेद' और 'मूल' के रूप में प्रसिद्ध हो गया। इस अनुमान की कसौटी पर छेदसूत्र तो विषय-वस्तु की दृष्टि से खरे उतरते हैं। लेकिन वर्तमान में उपलब्ध मूलसूत्रों की 'मूल' प्रायश्चित्त से कोई संगति नहीं बैठती। सामयिक चारित्र स्वल्पकालिक है, अतः प्रायश्चित्त का संबंध छेदोपस्थापनीय चारित्र से अधिक है । छेदसूत्र तत्चारित्र संबंधी प्रायश्चित्त का विधान करते हैं, संभवतः इसीलिए इनका नाम 'छेदसूत्र' पड़ा होगा। दिगम्बर ग्रन्थ 'छेदपिंड' में प्रायश्चित्त के आठ पर्यायवाची नाम हैं। उनमें एक नाम 'छेद' है। श्वेताम्बर - परम्परा में प्रायश्चित्त के दस भेदों में सातवाँ प्रायश्चित्त 'छेद' है। अंतिम तीन प्रायश्चित्त साधुवेश से मुक्त होकर वहन किये जाते हैं। लेकिन श्रमण पर्याय में होने वाला अंतिम प्रायश्चित्त 'छेद' है । स्खलना होने पर जो चारित्र के छेद-काटने का विधान करते हैं, वे ग्रन्थ छेदसूत्र हैं। Jain Education International आवश्यक की मलयगिरि टीका में समाचारी के प्रकरण में छेदसूत्रों के लिए पदविभाग सामाचारी शब्द का प्रयोग ধ ট For Private मिलता है।३२ पदविभाग और छेद ये दोनों शब्द एक ही अर्थ के द्योतक हैं। छेदसूत्र में सभी सूत्र स्वतंत्र है। एक सूत्र का दूसरे सूत्र के साथ विशेष संबंध नहीं है तथा व्याख्या भी छेद या विभाग दृष्टि से की गई है। इसलिए भी इनको छेदसूत्र कहा जा सकता है। -- नामकरण के बारे में आचार्य तुलसी (वर्तमान गणाधिपति तुलसी) ने एक नई कल्पना प्रस्तुत की है - "छेदसूत्र को उत्तमश्रुत माना है । 'उत्तम श्रुत' शब्द पर विचार करते समय एक कल्पना होती है कि जिसे हम 'छेयसुत्त' मानते हैं वह कहीं 'छेकश्रुत' तो नहीं है? छेकश्रुत अर्थात् कल्याणश्रुत या उत्तम श्रुत। दशाश्रुतस्कन्ध को छेदसूत्र का मुख्य ग्रन्थ माना गया है। ३ इससे 'छेयसुत्त' का 'छेकसूत्र' होना अस्वाभाविक नहीं लगता । दशवैकालिक (४/११) में 'जं छेयं तं समायरे' पद प्राप्त हैं। इससे 'छेय' शब्द के 'छेक' होने की पुष्टि होती है । ३४ { ९० ম जिससे नियमों में बाधा न आती हो तथा निर्मलता की वृद्धि होती हो, उसे छेद कहते हैं। ५ पंचवस्तु की टीका में हरिभद्र द्वारा किए गए इस अर्थ के आधार पर यह अनुमान किया जा सकता है कि जो ग्रन्थ निर्मलता एवं पवित्रता के वाहक हैं, वे छेदसूत्र हैं। अतः इन ग्रन्थों का छेद नामकरण सार्थक लगता वर्तमान में उपलब्ध चार छेदसूत्रों का नामकरण भी सार्थक हुआ है। आयारदशा में साधुजीवन के आचार की विविध अवस्थाओं का वर्णन है। यह दस अध्ययनों में निबद्ध है, अतः इसका नाम 'दशाश्रुतस्कंध' भी है। कल्प का अर्थ है - आचार। जिसमें विस्तृत रूप में साधु के विधि-निषेध सूचक आचार का वर्णन है, वह 'बृहत्कल्प' है। बृहत्कल्प नाम की सार्थकता का विस्तृत विवेचन मलयगिरि ने बृहत्कल्प भाष्य की पीठिका में किया है। ३६ व्यवहार प्रायश्चित्त सूत्र है। इसमें पाँच व्यवहारों का मुख्य वर्णन होने के कारण इसका नाम 'व्यवहार' रखा गया । आचारप्रकल्प में आचार के विविध प्रकल्पों का वर्णन है। इसका दूसरा नाम निशीथ भी है । निशीथ का अर्थ है - अर्धरात्रि या अंधकार । निशीथ भाष्य के अनुसार 'निशीथ' की वाचना अर्धरात्रि या अप्रकाश में दी जाती थी इसलिए इसका नाम निशीथ प्रसिद्ध हो गया । ३७ इसका संक्षिप्त नाम 'प्रकल्प' भी है। Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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