Book Title: Chandraprabhacharitam Author(s): Amrutlal Shastri Publisher: Z_Acharya_Shantisagar_Janma_Shatabdi_Mahotsav_Smruti_Granth_012022.pdf View full book textPage 1
________________ चन्द्रप्रभचरितम् : एक परिशीलन अमृतलाल शास्त्री ग्रन्थ-परिचय नाम--अष्टम तीर्थङ्कर चन्द्रप्रभ के शिक्षाप्रद जीवनवृत्त को लेकर लिखे गये प्रस्तुत महाकाव्य का नाम ' चन्द्रप्रभचरितम् ' है, जैसा कि प्रतिज्ञा वाक्य (१.९), पुष्पिका वाक्यों तथा ' श्रीजिनेन्दुप्रभस्येदें....' इत्यादि प्रशस्ति के अन्तर्गत पद्य (५) से स्पष्ट है। प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश भाषाओं में निबद्ध प्राचीन एवं अर्वाचीन काव्यों के अवलोकन से ज्ञात होता है कि उनके चरितान्त नाम रखने की परम्परा प्राचीन काल से ही चली आरही है। समुपलब्ध काव्यों में विमलसूरि (ई० १ शती) का 'पउमचरियं' प्राकृत काव्यों में, अश्वघोष (ई० १ शती) का 'बुद्धचरितम्' संस्कृत काव्यों में और स्वयम्भू कवि (ई. ७ शती) का 'पउमचरिउ' अपभ्रंश काव्यों में सर्वाधिक प्राचीन हैं । प्रस्तुत चरित महाकाव्य का नाम उक्त चरित काव्यों की परम्परा के अनुकूल है। सभी सर्गों के अन्तिम पद्यों में 'उदय' शब्द का सन्निवेश होने से यह काव्य 'उदयाङ्क' कहलाता है । विषय प्रस्तुत ग्रन्थ का प्रतिपाद्य विषय भ० चन्द्रप्रभ का अत्यन्त शिक्षाप्रद जीवनवृत्त है, जो इसके अठारह सर्गों के इकतीस छन्दों में निबद्ध एक हजार छः सौ एकानवे पद्यों में समाप्त हुआ है। प्रारम्भ के पन्द्रह सर्गों में चरितनायक अष्टम तीर्थङ्कर भ. चन्द्रप्रभ के छः अतीत भवों का और अन्तके तीन सर्गों में वर्तमान भव का वर्णन किया गया है। सोलहवें सर्ग में गर्भकल्याणक, सत्रहवें में जन्म, तप और ज्ञान तथा अठारहवें में मोक्षकल्याणक वर्णित हैं। महाकाव्योचित प्रासङ्गिक वर्णन और अवान्तर कथाएँ भी यत्र-तत्र गुम्फित हैं। चं. च. की कथावस्तु का संक्षिप्त सार चं. च. में चरितनायक के राजा श्रीवर्मा, श्रीधरदेव, सम्राट् अजितसेन, अच्युतेन्द्र राजा पद्मनाभ, अहमिन्द्र और चन्द्रप्रभ'-इन सात भवों का विस्तृत वर्णन है, जिसका संक्षिप्त सार इस प्रकार है१. यः श्रीवर्मनृपो बभूव विबुधः सौधर्मकल्पे तत स्तस्माच्चाजितसेनचक्रभृदभूद्यश्चाच्युतेन्द्रस्ततः । यश्चाजायत पद्मनामनपतियों वैजयन्तेश्वरोयः स्यात्तीर्थकरः स सप्तमभवे चन्द्रप्रभः पातु न । कविप्रशस्ति, पद्य ९। १९४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10