Book Title: Chandraprabhacharitam Author(s): Amrutlal Shastri Publisher: Z_Acharya_Shantisagar_Janma_Shatabdi_Mahotsav_Smruti_Granth_012022.pdf View full book textPage 8
________________ चन्द्रप्रभचरितम् : एक परिशीलन २०१ करते हुए एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा लेकर तप करते हैं। दीक्षा लेते समय वे पांच दृढ मुष्टियों से केश लुञ्चन करते हैं । देवेन्द्र और देव मिलकर तप कल्याणक का उत्सव मनाते हैं, और उन केशों को मणिमय पात्र में रखकर क्षीरसागर में प्रवाहित करते हैं । पारणा–नलिनपुर' में राजा सोमदत्त' के यहाँ वे पारणा करते हैं। इसी अवसर पर वहाँ पांच आश्चर्य प्रकट होते हैं। कैवल्य प्राप्ति-घोर तप करके वे शुक्लध्यान का अवलम्बन लेकर [फाल्गुन कृष्णा सप्तमी के दिन ] कैवल्य पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति करते हैं। समवसरण-कैवल्य प्राप्ति के पश्चात् इन्द्र का आदेश पाकर कुबेर साढ़े आठ योजन के विस्तार में वर्तुलाकार समवसरण का निर्माण करता है। इसके मध्य गन्धकुटी में एक सिंहासन पर भगवान् चन्द्रप्रभ विराजमान हुए और चारों ओर बारह प्रकोष्ठों में गणधर आदि । दिव्यदेशना-तदनन्तर गणधर (मुख्य शिष्य) के प्रश्न का उत्तर देते हुए भ. चन्द्रप्रभ ने जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष-- इन सात तत्त्वों का निरूपण ऐसी भाषा में किया, जिसे सभी श्रोता आसानी से समझते रहे । गणधरादिकों की संख्या-दस सहज, दस केवलज्ञानकृत और चौदह देवरचित अतिशयों तथा आठ प्रातिहार्यों से विभूषित भ. चन्द्रप्रभ के समवसरण में तेरानचे गणधर, दो हजार" कुशाग्रबुद्धि पूर्वधारी, दो लाख चारसौ' उपाध्याय, आठ हजार अवधिज्ञानी, दस हजार केवली, चौदह हजार १. हरिवंश (७२४.२४०) और त्रिषष्टिशलाका पु. (२९८.६६) में पुर का नाम 'पद्मखण्ड' तथा पुराणसा. (८६.६२) में 'नलिनखण्ड' दिया है। २. हरिवंश (७२४.२४६) और पुराणसा. (८६.६२) में राजा का नाम 'सोमदेव' लिखा मिलता है। ३. यह मिति उ. पु. (५४.२२४) के आधार पर दी गयी है। चं. च. में भ. चन्द्रप्रभ के जन्म और मोक्ष कण्याणकों की मितियाँ अङ्कित हैं, शेष तीन कल्याणकों की नहीं। ४. त्रिषष्टिशलाका पु. (२९८.७५) में चं. के समसरवण का विस्तार एक योजन लिखा है। ५. तिलोय प. (४.११२०) में पूर्वधारियों की संख्या चार हजार दी है। ६. तिलोय प. (४.११२०) में उपाध्यायों की संख्या दो लाख दस हजार चारसौ दी है। ७. तिलोय प. (४.११२१) में अवभिशानियों की संख्या दो हजार लिखी है। ८. तिलोय प. (४.११२१) में केवलियों की संख्या अठारह हजार दी है। ९. तिलोय प. (४.११२१) में विक्रियाऋद्धिधारियों की संख्या छः सौ दी है और हरिवंश (७३६.३८६) में दस हजार चारसौ। २६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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