Book Title: Chandraprabh Charitram Part 01
Author(s): Hitvardhanvijay
Publisher: Kusum Amrut Trust
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सिद्धान्ताऽऽदित्यमाश्रित्य, कलापूर्णः सुवृत्तभाक् । चन्द्रवत्प्रीतिदः सोऽभूच्चन्द्रसूरिस्ततः परम् ॥३॥ विद्यावल्लीमहावृक्षः, संयमप्रतिमारथः । संसाराऽब्धिसदायानं, देवसूरिर्गुरुस्ततः ॥४॥ सिद्धविद्यारसस्पर्शात्, सुवर्णत्वमुपागतम् । शिवायाऽभयसूरीणां, वचस्तारमुपास्महे ॥५॥ निर्वास्याऽन्यगिरश्चित्तान्यवष्टभ्य स्थिता नृणाम् । यद्वाक् सोऽभूज्जगत्ख्यातः, श्रीमद्धनेश्वरः प्रभुः ॥६॥ यद्वाग्गङ्गा त्रिभिर्मार्गस्तर्कसाहित्यलक्षणैः । पुनाति जीयाद्विजयसिंहसूरिः स भूतले ॥७॥ श्रीधनेशपदे सूरिर्देवेन्द्राऽऽख्यः स्वभक्तितः । पुण्याय चरितं चक्रे, श्रीमच्चन्द्रप्रभप्रभोः ॥८॥
-नागेन्द्रगच्छमां परमार वंशमां उत्तम विख्यात तारक सूरि श्रीवर्द्धमान नामना थया. १ पछी गुणना समूहथी सुन्दर एवा रामसूरि थया के जेमना मुखकमलना मध्यभागमां वचनरूपी लक्ष्मीओ क्रीडा करती हती. २ त्यार पछी सिद्धान्तरूपी सूर्यना आश्रये पूर्ण कलावाळा सारा वृत्त (वर्तुल, आचार) वाळा चंद्रनीपेठे प्रीति करावनार चंद्रसूरि थया. ३ पछी विद्यारूपी वेलीवाला महावृक्ष जेवा संसाररूपी समुद्रमां सदा नौका सरखा एवा देवसूरि नामना गुरु थया. ४ (पछी थएला) अभयसूरिना जाणे सिद्ध विद्याना रस स्पर्शथी जेने सुवर्णत्व प्राप्त थएलुं छे एवा वचनरूपी मोतीनी (अमे) कल्याण अर्थे उपासना करीए छीए. ५ (पछी) जेनी वाणी अन्य वाणीओनो बहिष्कार करी मनुष्योनां चित्तोने धारी राखी-चित्तमां स्थान पामी रहेली छे ते जगत्प्रसिद्ध श्रीमद् धनेश्वर प्रभु थया. ६ जेनी वाणीरूपी गंगा त्रण मार्ग नामे तर्क साहित्य अने लक्षणथी पवित्र करे छे ते विजयसिंहसूरि भूतले चिरंजीव रहो. ७ (उक्त) धनेश एटले धनेश्वरना पदे-पाटे देवेन्द्र नामना सूरि थया के जेमणे पोतानी भक्तिथी पुण्यार्थे श्रीमत् चंद्रप्रभुनुं चरित्र रच्यु. (आ प्रशस्तिनो उल्लेख बुलरना रीपोर्ट २ नं. ३४७, बुह्० ३ नं. १५८, पीटर्सन रीपोर्ट ४ पृ० ८५ मां पण छे.)
चन्द्रप्रभचरित्रम्, पूर्वप्रकाशननी प्रस्तावना ।
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